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सावरकर - The Untold Truth


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सावरकर - The Untold Truth


#इतिहास में छुपाया गया एक सच ....


आइए जानते हैं एक ऐसे महान क्रांतिकारी के बारे में जिनका नाम और काम इतिहास के पन्नों से मिटा दिया गया। जिन्होंने ब्रिटिश हुकूमत के द्वारा इतनी यातनाएं झेलीं की उसके बारे में कल्पना करके ही इस देश के करोड़ों भारत माँ के कायर पुत्रों में सिहरन पैदा हो जायेगी।


जिनका नाम लेने मात्र से आज भी हमारे देश के राजनेता भयभीत होते हैं क्योंकि उन्होंने माँ भारती की निस्वार्थ सेवा की थी |


45 साल के महात्मा गाँधी 1915 में भारत आते हैं, 2 दशक से भी ज्यादा दक्षिण अफ्रीका में बिता कर। इससे 4 साल पहले 28 वर्ष का एक युवक अंडमान में एक कालकोठरी में बन्द होता है। अंग्रेज उससे दिन भर कोल्हू में बैल की जगह हाँकते हुए तेल पेरवाते है, रस्सी बटवाते हैं और छिलके कूटवाते हैं।


वो तमाम कैदियों को शिक्षित कर रहा होता है।उनमें राष्ट्रभक्ति की भावनाएँ प्रगाढ़ कर रहा होता है और साथ ही दीवारों पर कील, काँटों और नाखून से साहित्य की रचना कर रहा होता है। 

उनका नाम था

#विनायक_दामोदर_सावरकर

वीर सावरकर.....


उन्हें आत्महत्या के ख्याल आते। स खिड़की की ओर एकटक देखते रहते थे, जहाँ से अन्य कैदियों ने पहले आत्महत्या की थी। पीड़ा असह्य हो रही थी। यातनाओं की सीमा पार हो रही थी। अंधेरा उन कोठरियों में ही नहीं, दिलोदिमाग पर भी छाया हुआ था। दिन भर बैल की जगह खटो, रात को करवट बदलते रहो...


11_साल ऐसे ही बीते, कैदी उनकी इतनी इज्जत करते थे कि मना करने पर भी उनके बर्तन, कपड़े वगैरह धो देते थे उनके काम में मदद करते थे।सावरकर से अँग्रेज बाकी कैदियों को दूर रखने की कोशिश करते थे। अंत में बुद्धि को विजय हुई तो उन्होंने अन्य कैदियों को भी आत्महत्या से विमुख किया।...

लेकिन नहीं, महा गँवारों का कहना है कि सावरकर ने मर्सी पेटिशन लिखा सॉरी कहा, माफ़ी माँगी..

ब्ला-ब्ला-ब्ला


मूर्खों, काकोरी कांड में फँसे क्रांतिकारी रामप्रसाद बिस्मिल ने भी माफ़ी माँगी थी,

तो ?

उन्हें भी 'डरपोक' करार दोगे ?

बताओ ?

उन्होंने भी माफ़ी माँगी थी अंग्रेजों से,


क्या अब इस कसौटी पर क्रांतिकारियों को तौला जाएगा?

शेर जब बड़ी छलाँग लगाता है तो कुछ कदम पीछे लेता ही है। उस समय उनके मन में क्या था, आगे की क्या रणनीति थी- ये आज कुछ लोग बैठे-बैठे जान जाते हैं। 

कौन ऐसा स्वतंत्रता सेनानी है जिसे 11 साल कालापानी की सज़ा मिली हो।

नेहरू?

गाँधी?

कौन?...


वीर सावरकर ने स्वयं के लिए माफी नहीं बल्कि 

भारत के सभी कैदियों के लिए दया याचिका मांगी थी

प्रमाण प्रस्तुत है |

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Image Source : Google

इस समय देश में #वीर_सावरकर जी पर बहस चल रही है, झूंठ की फैक्ट्री चलाने वाले अपनी आदत के मुताबिक बढ़ा-चढ़ा कर झुठ फैलाने मे बेदम है | बार-बार हर बार साजिश के तहत यह झुठ फैलाया जाता है कि कालापानी जैसी सजा काटने वाले महान स्वातंत्र्य वीर सावरकर ने अंग्रेजो से माफी थी, जबकि सच्चाई यह है वीर सावरकर ने अपने लिए नही बल्की अंडमान जेल में बंद सारे कैदियो के लिए माफी मांगी थी |

मटमैला रंग का दस्तावेज का जो पीडीएफ फोटो है वह पुरी तरह से असली है |

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जिसे #संकेत_कुलकर्णी ने लंदन लाइब्रेरी से प्राप्त किया है उसे आप स्वयं पढ़ सकते है
। जिसमें वह साफ शब्दों मे अंडमान जेल के सारे कैदियो के लिए दया याचिका की मांग कर रहे है।अब आप कहेगे कि सावरकर जी ने सारे कैदियो के लिए माफी याचिका क्यो मांगी थीतो इसके लिए आपको वीर सावरकर के लिखी अंग्रेजी में एक किताब पढ़ना होगा उस किताब का नाम है

"MY TRANSPORATION LIFE"

उस किताब में टोटल 307 पेज है। यदी आपके पास पुरी किताब पढ़ने का समय नही है तो मत पढिए लेकिन इस किताब के पेज नम्बर 69,219,220 और 221 पढ़ने लायक है | मूल रुप से यह पुस्तक मराठी भाषा मे थी जिसे अंग्रेजी में अनुवाद किया गया है 


खैर, 

सावरकर जी को सारे कैदियों के लिए माफी की जरुरत क्यों पड़ गई थी ?


तो इसका उत्तर यह किताब देता है कि वें इंदू भुषण नामक कैदी के आत्महत्या से वें इतने दुखी हो गये थें कि उन्होनें सारे कैदियों के लिए माफी याचिका लिख डाली थी। आप इसका विवरण इस पुस्तक के Indu had hanged himself last night में पढ़ सकते है। 


वीर सावरकर ने एक जगह इस पुस्तक में खुद लिखा है कि मैं एक बैरिस्टर होकर ऐसी गलती कैसे कर सकता था ?


यदि मैं पत्र लिखता तो अनेक अंग्रेज अफसरों के हाथों में जाती और वें इसे या तो दबा लेते नही तो फाड़ देते क्योंकी अंडमान का कालापानी के सजा मानवाधिकार के खिलाफ था, और उन्हे लज्जित होना पड़ता.


यह पुस्तक आपको Pdf मे गुगल पर उपलब्ध है इसे डाउनलोड कर सभी पढ़ सकते है  My Transporation Life

खैर इस लेख में जो फोटो अपलोड किया गया है उसमें अंडरलाइन किए हुए शब्दों को पढ़ लिजीए सावरकर जी ने अपने लिए नही ब्लकि अंडमान जेल में बंद सारे कैदियों के लिए माफी याचिका भेजी थी

गांधी से लेकर इंदिरा तक ने सावरकर जी को राष्ट्रवादी और भारत की वीर सन्तान ही कहा है और इंदिरा ने 1970 में सावरकर जी पर डाक टिकट से लेकर अपने निजी  खाते से 11000 रुपये उनके ट्रष्ट को डोनेट किये थे |

पर अब कांग्रेस को सत्ता में बने रहने के लिए मुस्लिमो का तुष्टीकरण अनिवार्य दिखाई देता है इसलिए कांग्रेस हर वो काम कर रही है जिससे जेहादी प्रसन्न हो सके और वो वोट ले सके | मणिशंकर अय्यर ने मुस्लिम तुष्टिकरण को बढ़ावा देने के लिए अण्डमान स्थित सेल्युलर जेल से वीर सावरकर के स्मृति चिन्हो को हटवा दिया |

यहाँ तक की उन्हें अंग्रेजो से माफी मांगने के नाम पर गद्दार तक कहा था |

भारत देश की विडंबना देखिये जिन महान क्रांतिकारियों ने अपना जीवन देश के लिए बलिदान कर दिया, उन क्रांतिकारियों के नाम पर जात-पात, प्रांतवाद, विचारधारा, राजनीतिक हित आदि के आधार पर विभाजन कर दिया गया। इस विभाजन का एक मुख्य कारण देश पर सत्ता करने वाला एक दल भी रहा। जिसने केवल गांधी-नेहरू को देश के लिए संघर्ष करने वाला प्रदर्शित किया। जिससे यह भ्रान्ति पैदा हो गई हैं कि देश को स्वतंत्रता गांधी जी/कांग्रेस ने दिलाई ? 


वीर सावरकर भी स्वाधीनता के लिए प्राणोत्सर्ग करने वाले, सर्वस्व समर्पित करने वाले असंख्य क्रांतिकारियो अमर हुतात्माओं में से एक थे जिनकी पूर्ण रूप से उपेक्षा की गई |

वीर सावरकर ने अपनी कहानी में अंडमान की यात्राओं पर प्रकाश डालते हुए कोल्हू में बैल की तरह जुत कर तेल पेरने का बड़ा ही सजीव वर्णन किया है |


उन्होंने लिखा है - "हमें तेल का कोल्हू चलने का काम सोंपा गया जो बैल के ही योग्य माना जाता है.."

जेल में सबसे कठिन काम कोल्हू चलाना ही था|सवेरे उठते ही लंगोटी पहनकर कमरे में बंद होना तथा सांय तक कोल्हू का डंडा हाथ से घुमाते रहना कोल्हू में नारियल की गरी पड़ते ही वः इतना भारी चलने लगता की हृदय पुष्ट शरीर के व्यक्ति भी उसकी बीस फेरियां करते रोने लग जाते ...


राजनीतिक कैदियों का स्वास्थ्य खराब हो या भला, ये सब सख्त काम उन्हें दिए ही जाते थे चिकित्सा शास्त्र भी इस प्रकार साम्राज्यवादियों के हाथ की कठपुतली हो गया  सवेरे दस बजे तक लगातार चक्कर लगाने से श्वास भारी हो जाता और प्रायः सभी को चक्कर आ जाता या कोई बेहोश हो जाते  दोपहर का भोजन आते ही दरवाजा खुल पड़ता, बंदी थाली भर लेता और अंदर जाता की दरवाजा बंद

"यदि इस बीच कोई अभागा केडी चेष्टा करता की हाथ पैर धोले या बदन पर थोड़ी धूप लगाले तो नम्बरदार का पारा चढ़ जाता |

वह मां बहन की गालियाँ देनी शुरू कर देता था|हाथ धोने का पानी नहीं मिलता था,पीने के पानी के लिए तो नम्बरदार के सैंकड़ो निहार करने पड़ते थे | कोल्हू को चलाते चलाते पसीने से तर हो जाते,प्यास लग जाती | पानी मांगते तो पानी वाला पानी नही देता था |

यदि कही से उसे एकाध चुटकी तम्बाकू की दे दी तो अच्छी बात होती नही तो उलटी शिकायत होती की ये पानी बेकार बहाते है जो जेल मे एक बड़ा जुर्म होता...

यदि किसी ने जमादार से शिकायत की तो वः गुस्से में कह उठता - " दो कटोरी पानी देने का हुक्म है, तुम तो तीन पि गया और पानी क्या अब तुम्हारे बाप के यहाँ से आएगा ? " नहाने की तो कल्पना करना ही अपराध था |

हां , वर्षा हो तो भले नाहा लें |

"केवल पानी ही नहीं अपितु" भोजन की भी वही स्थिति थी, खाना देकर जमादार कोठरी बंद कर देता और कुछ देर में हल्ला करने लगता - " बैठो मत , शाम को तेल पूरा हो नही तो पीटे जाओगे | और जो सजा मिलेगी सो अलग " इसे वातावरण में बंदियों को खाना निगलना भी कठिन हो जाता | बहुत से ऐसा करते की मुंह में कौर रख लिया और कोल्हू चलाने लगे |कोल्हू पेरते पेरते थालियो मे पसीना टपकाते टपकाते,कौर को उठाकर मुंह में भरकर निगलते कोल्हू पेरते रहते १०० में से एकाध ऐसे थे जो दिन भर कोल्हू में जुतकर तीस पौंड तेल निकाल पाते | जो कोल्हू चलाते चलाते थककर हाय हाय कर देते उन पर जमादार और वार्डन की मार पड़ती| तेल पूरा न होने पर उपर से थप्पड़ पड़ रहे है, आँखों में आंसुओं की धारा बह रही है |


वीर सावरकर जानते थे कि यह अत्याचार क्रांतिकारियों पर अंग्रेजों द्वारा इसलिए किया जा रहा है ताकि वे मानसिक रूप से विक्षिप्त होकर या तो पागल हो जाये अथवा मर जाये। अंग्रेजों की छदम न्यायप्रियता का यह साक्षात उदाहरण था। इतिहास फिर से दोहरा रहा था..


औरंगजेब ने भी कभी अंग्रेजो के समान छत्रपति शिवाजी महाराज को कैद कर समाप्त करने का सोचा था ताकि शिवाजी महाराज दक्कन का कभी दोबारा मुँह न देख सके। जन्मभूमि से इतनी दूर जाकर इस प्रकार से मरना वीर सावरकर को किसी भी प्रकार से स्वीकार्य नही था

उन्हें लगा की उनका जीवन इसी प्रकार से नष्ट हो जायेगा |

मातृभूमि की सेवा वह कभी नहीं कर पाएंगे उन्होंने साम,दाम,दंड और भेद की वही नीति अपनाई जो वीर शिवाजी राजे ने औरंगज़ेब की कैद में अपनाई थी|


उन्होंने अंग्रेजों से क्षमा मांग कर मातृभूमि जाने का प्रस्ताव उनके समक्ष रखा | अंग्रेज उनकी कूटनीति का शिकार बन गए| वीर सावरकर को सशर्त रिहा कर दिया गया |

अपने निर्वासित जीवन में उन्हे न रत्नागिरी से बाहर नही निकलना था और न ही किसी भी प्रकार की क्रांतिकारी गतिविधि में भाग लेना था | वीरसावरकर ने अवसर का समुचित लाभ उठाया | उन्होंने अण्डमान जेल के कैदियों के अधिकारों के लिए आंदोलन किया |


उससे भी बढ़कर उन्होंने छुआछूत रूपी अन्धविश्वास के विरोध में आंदोलन चलाया, वीरसावरकर ने पतितपावन मंदिर की स्थापना की जिसमें बिना किसी भेदभाव के ब्राह्मण से लेकर शूद्र सभी को प्रवेश करने की अनुमति थी |

सामूहिक भोज का आयोजन किया जिसमे शूद्रो के हाथ से ब्राह्मण भोजन ग्रहण करते थे | दलित बच्चो को जनेऊ धारण करवाने से लेकर गायत्री मंत्र की शिक्षा दी | रत्नागिरि में वीर सावरकर ने छुआछूत रूपी अभिशाप को समाप्त करने के लिए अत्यंत प्रभावशाली आंदोलन किया | इसके साथ साथ जनचेतना के लिए उनका लेखन कार्य अविरल चलता रहा

खेद हैं कि वीर सावरकर के इस चिंतन, श्रम और पुरुषार्थ की अनदेखी कर साम्यवादी इतिहासकार अपनी आदत के मुताबिक उन्हे गद्दार कहकर अपमानित करते हैं। उनकी माफ़ी मांगने की कूटनीति को कायरता के रूप में प्रेषित करते है। धिक्कार है ऐसे पक्षपाती लेखकों को और ऐसे राजनेताओं को जो वीर सावरकर के महान कार्यों की उपेक्षा कर अपने राजनीतिक हितों को साधने में लगे हुए हैं। उन्हें गद्दार कहते है 


वीर सावरकर गद्दार नहीं अपितु स्वाभिमानी थे। देशभक्त थे। धर्मयोद्धा थे। अनेक क्रांतिकारियों के मार्गदर्शक थे। कूटनीतिज्ञ थे। प्रबुद्ध लेखक थे। आत्मस्वाभिमानी थे। समाज सुधारक थे |


#वीर_सावरकर जी ने छुआछूत मिटाने,धर्मरक्षा,देश भक्ति के लिए पुरुषार्थ किया हमारे क्रांतिकारी महान है गद्दार कभी नहीं। गद्दार तो वो है जो उनकी आलोचना करते है।


नानासाहब पेशवा, महारानी लक्ष्मीबाई और वीर कुँवर सिंह जैसे कितने ही वीर इतिहास में दबे हुए थे। 1857 को सिपाही विद्रोह बताया गया था। तब इसके पर्दाफाश के लिए 20-22 साल का एक युवक लंदन की एक लाइब्रेरी का किसी तरह एक्सेस लेकर और दिन-रात लग कर अँग्रेजों के एक के बाद एक दस्तावेज पढ़ कर सच्चाई की तह तक जा रहा था, जो भारतवासियों से छिपाया गया था। उसने साबित कर दिया कि वो सैनिक विद्रोह नहीं, प्रथम स्वतंत्रता संग्राम था। उसके सभी अमर बलिदानियों की गाथा उसने जन-जन तक पहुँचाई। भगत सिंह सरीखे क्रांतिकारियों ने मिल कर उसे पढ़ा, अनुवाद किया।


दुनिया में कौन सी ऐसी किताब है जिसे प्रकाशन से पहले ही प्रतिबंधित कर दिया गया था ? 


अँग्रेज कितने डरे हुए थे उससे कि हर वो इंतजाम किया गया, जिससे वो पुस्तक भारत न पहुँचे। जब किसी तरह पहुँची तो क्रांति की ज्वाला में घी की आहुति पड़ गई। कलम और दिमाग, दोनों से अँग्रेजों से लड़ने वाले सावरकर थे।..


दलितों के उत्थान के लिए काम करने वाले सावरकर थे।


11 साल कालकोठरी में बंद रहने वाले सावरकर थे।


हिंदुत्व को पुनर्जीवित कर के राष्ट्रवाद की अलख जगाने वाले सावरकर थे। 


साहित्य की विधा में पारंगत योद्धा सावरकर थे।


आज़ादी के बाद क्या मिला उन्हें? अपमान।

नेहरू व मौलाना अबुल कलाम जैसो ने तो मलाई चाटी सत्ता की, सावरकर को गाँधी हत्या केस में फँसा दिया। गिरफ़्तार किया। पेंशन तक नहीं दिया। प्रताड़ित किया।

60 के दशक में उन्हें फिर गिरफ्तार किया, प्रतिबंध लगा दिया। उन्हें सार्वजनिक सभाओं में जाने से मना कर दिया गया। ये सब उसी भारत में हुआ, जिसकी स्वतंत्रता के लिए उन्होंने अपना जीवन खपा दिया। आज़ादी के मतवाले से उसकी आज़ादी उसी देश में छीन ली गई, जिसे उसने आज़ाद करवाने में योगदान दिया था। 

शास्त्री जी PM बने तो उन्होंने पेंशन का जुगाड़ किया।

वो कालापानी में कैदियों को समझाते थे कि धीरज रखो, एक दिन आएगा जब ये जगह तीर्थस्थल बन जाएगी आज भले ही हमारा पूरे विश्व में मजाक बन रहा हो, एक समय ऐसा होगा जब लोग कहेंगे कि देखो, इन्हीं कालकोठरियों में हिंदुस्तानी कैदी बन्द थे। 

सावरकर कहते थे कि तब उन्हीं कैदियों की यहाँ प्रतिमाएँ होंगी। 


आज आप अंडमान जाते हैं तो सीधा 'वीर सावरकर इंटरनेशनल एयरपोर्ट' पर उतरते हैं। सेल्युलर जेल में उनकी प्रतिमा लगी है , उस कमरे में प्रधानमंत्री भी जाकर ध्यान धरता है, जिसमें सावरकर जी को रखा गया था |


सावरकर का अपमान करने का अर्थ है अपने ही थूक को ऊँट के मूत्र में मिला कर पीना |


आज आपको समझना होगा | कौन थे वीर सावरकर और क्या थे उनके कार्य | जो भ्रांतियां फैला रखी है कुछ लोगों ने वो दूर हो जाएंगी, ऐसे उनके कुछ कार्यो को जाणते है |

वीर सावरकर कौन थे..? जिन्हें आज कांग्रेसी और वामपंथी कोस रहे हैं और क्यों..??


ये 25 बातें पढ़कर आपका सीना गर्व से चौड़ा हो उठेगा।

इसको पढ़े बिना आज़ादी का ज्ञान अधूरा है !

तो चलीये जाणते हैं


1. वीर सावरकर पहले क्रांतिकारी देशभक्त थे जिन्होंने 1901 में ब्रिटेन की रानी विक्टोरिया की मृत्यु पर नासिक में शोक सभा का विरोध किया और कहा कि वो हमारे शत्रु देश की रानी थी, हम शोक क्यूँ करें?

क्या किसी भारतीय महापुरुष के निधन पर ब्रिटेन में शोक सभा हुई है.?


2. वीर सावरकर पहले देशभक्त थे जिन्होंने एडवर्ड सप्तम के राज्याभिषेक समारोह का उत्सव मनाने वालों को त्र्यम्बकेश्वर में बड़े बड़े पोस्टर लगाकर कहा था कि गुलामी का उत्सव मत मनाओ..!


3. विदेशी वस्त्रों की पहली होली पूना में 7 अक्तूबर 1905 को वीर सावरकर ने जलाई थी…!


4. वीर सावरकर पहले ऐसे क्रांतिकारी थे जिन्होंने विदेशी वस्त्रों का दहन किया, तब बाल गंगाधर तिलक ने अपने पत्र केसरी में उनको शिवाजी के समान बताकर उनकी प्रशंसा की थी जबकि इस घटना की दक्षिण अफ्रीका के अपने पत्र ‘इन्डियन ओपीनियन’ में गाँधी ने निंदा की थी…!


5. सावरकर द्वारा विदेशी वस्त्र दहन की इस प्रथम घटना के 16 वर्ष बाद गाँधी उनके मार्ग पर चले और 11 जुलाई 1921 को मुंबई के परेल में विदेशी वस्त्रों का बहिष्कार किया…!


6. सावरकर पहले भारतीय थे जिनको 1905 में विदेशी वस्त्र दहन के कारण पुणे के फर्म्युसन कॉलेज से निकाल दिया गया और दस रूपये जुरमाना किया… इसके विरोध में हड़ताल हुई… स्वयं तिलक जी ने ‘केसरी’ पत्र में सावरकर के पक्ष में सम्पादकीय लिखा…!


7. वीर सावरकर ऐसे पहले बैरिस्टर थे जिन्होंने 1909 में ब्रिटेन में ग्रेज-इन परीक्षा पास करने के बाद ब्रिटेन के राजा के प्रति वफ़ादार होने की शपथ नहीं ली… इस कारण उन्हें बैरिस्टर होने की उपाधि का पत्र कभी नहीं दिया गया…!


8. वीर सावरकर पहले ऐसे लेखक थे जिन्होंने अंग्रेजों द्वारा ग़दर कहे जाने वाले संघर्ष को ‘1857 का स्वातंत्र्य समर’ नामक ग्रन्थ लिखकर सिद्ध कर दिया…!


9. सावरकर पहले ऐसे क्रांतिकारी लेखक थे जिनके लिखे ‘1857 का स्वातंत्र्य समर’ पुस्तक पर ब्रिटिश संसद ने प्रकाशित होने से पहले प्रतिबन्ध लगाया था…।


10. ‘1857 का स्वातंत्र्य समर’ विदेशों में छापा गया और भारत में भगत सिंह ने इसे छपवाया था जिसकी एक एक प्रति तीन-तीन सौ रूपये में बिकी थी…! भारतीय क्रांतिकारियों के लिए यह पवित्र गीता थी… पुलिस छापों में देशभक्तों के घरों में यही पुस्तक मिलती थी…!


11. वीर सावरकर पहले क्रान्तिकारी थे जो समुद्री जहाज में बंदी बनाकर ब्रिटेन से भारत लाते समय आठ जुलाई 1910 को समुद्र में कूद पड़े थे और तैरकर फ्रांस पहुँच गए थे…!


12. सावरकर पहले क्रान्तिकारी थे जिनका मुकद्दमा अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय हेग में चला, मगर ब्रिटेन और फ्रांस की मिलीभगत के कारण उनको न्याय नहीं मिला और बंदी बनाकर भारत लाया गया…!


13. वीर सावरकर विश्व के पहले क्रांतिकारी और भारत के पहले राष्ट्रभक्त थे जिन्हें अंग्रेजी सरकार ने दो आजन्म कारावास की सजा सुनाई थी…!


14. सावरकर पहले ऐसे देशभक्त थे जो दो जन्म कारावास की सजा सुनते ही हंसकर बोले - “चलो, ईसाई सत्ता ने हिन्दू धर्म के पुनर्जन्म सिद्धांत को मान लिया”…!


15. वीर सावरकर पहले राजनैतिक बंदी थे जिन्होंने काला पानी की सज़ा के समय 10 साल से भी अधिक समय तक आज़ादी के लिए कोल्हू चलाकर 30 पोंड तेल प्रतिदिन निकाला…!


16. वीर सावरकर काला पानी में पहले ऐसे कैदी थे जिन्होंने काल कोठरी की दीवारों पर कंकर कोयले से कवितायें लिखीं और 6000 पंक्तियाँ याद रखी..!


17. वीर सावरकर पहले देशभक्त लेखक थे, जिनकी लिखी हुई पुस्तकों पर आज़ादी के बाद कई वर्षों तक प्रतिबन्ध लगा रहा…!


18. वीर सावरकर पहले विद्वान लेखक थे जिन्होंने हिन्दू को परिभाषित करते हुए लिखा कि : 

‘आसिन्धु सिन्धुपर्यन्ता यस्य भारत भूमिका,

पितृभू: पुण्यभूश्चैव स वै हिन्दुरितीस्मृतः।

अर्थात समुद्र से हिमालय तक भारत भूमि जिसकी पितृभूमि है, जिसके पूर्वज यहीं पैदा हुए हैं व यही पुण्य भूमि है, जिसके तीर्थ भारत भूमि में ही हैं, वही हिन्दू है..!


19.वीर सावरकर प्रथम राष्ट्रभक्त थे जिन्हें अंग्रेजी सत्ता ने 30 वर्षों तक जेलों में रखा तथा आजादी के बाद 1948 में नेहरु सरकार ने गाँधी हत्या की आड़ में लाल किले में बंद रखा पर न्यायालय द्वारा आरोप झूठे पाए जाने के बाद ससम्मान रिहा कर दिया…

देशी-विदेशी दोनों सरकारों को उनके राष्ट्रवादी विचारों से डर लगता था…।


20. वीर सावरकर पहले क्रांतिकारी थे जब उनका 26 फरवरी 1966 को उनका स्वर्गारोहण हुआ तब भारतीय संसद में कुछ सांसदों ने शोक प्रस्ताव रखा तो यह कहकर रोक दिया गया कि वे संसद सदस्य नही थे जबकि चर्चिल की मौत पर शोक मनाया गया था…।


21. वीर सावरकर पहले क्रांतिकारी राष्ट्रभक्त स्वातंत्र्य वीर थे जिनके मरणोपरांत 26 फरवरी 2003 को उसी संसद में मूर्ति लगी जिसमे कभी उनके निधन पर शोक प्रस्ताव भी रोका गया था…।


22. वीर सावरकर ऐसे पहले राष्ट्रवादी विचारक थे जिनके

चित्र को संसद भवन में लगाने से रोकने के लिए कांग्रेस अध्यक्षा सोनिया गाँधी ने राष्ट्रपति को पत्र लिखा लेकिन राष्ट्रपति डॉ. अब्दुल कलाम ने सुझाव पत्र नकार दिया और वीर सावरकर के चित्र अनावरण राष्ट्रपति ने अपने कर-कमलों से किया..|


23. वीर सावरकर पहले ऐसे राष्ट्रभक्त हुए जिनके शिलालेख को अंडमान द्वीप की सेल्युलर जेल के कीर्ति स्तम्भ से UPA सरकार के मंत्री मणिशंकर अय्यर ने हटवा दिया था और उसकी जगह गांधी का शिलालेख लगवा दिया..।


24. वीर सावरकर ने दस साल आजादी के लिए काला पानी में कोल्हू चलाया था जबकि गाँधी ने काला पानी की उस जेल में कभी दस मिनट चरखा नही चलाया..?


25. वीर सावरकर माँ भारती के पहले सपूत थे जिन्हें जीते जी और मरने के बाद भी आगे बढ़ने से रोका गया…


पर आश्चर्य की बात यह है कि इन सभी विरोधियों के घोर अँधेरे को चीरकर आज वीर सावरकर सभी मे लोकप्रिय और युवाओं के आदर्श बन रहे है।।


हजारो झूले थे फंदे पर, लाखों ने गोली खाई थी

क्यों झूठ बोलते थे साहब, चरखे से आजादी आई थी..


॥ वन्दे मातरम् ॥ 🇮🇳


@BhagirathShelar


7 Years of Modi's Government.

 ミ★ मोदींचा भारत ★彡

ミ★(26 मे 2014 ते 26 मे 2021)★彡




आज भारत देश हा मुख्यत्वे दोन कालखंडात विभागला जातो. एक म्हणजे मोदी 2014 ला येण्यापूर्वीचा आणि दुसरा म्हणजे मोदी 2014 ला आल्यानंतरचा ते आजपर्यंत. 


मोदी येऊन आज सात वर्ष पूर्ण होत आहेत.


आपण मोदींना दोनदा निवडून यासाठी दिले होते. कारण, आपल्याला बदल हवा होता. 


मग खरोखर काही बदल झालेत का? हा प्रश्न आपल्यापैकी बऱ्याच लोकांच्या मनात आहे. 


या सात वर्षात भारतामध्ये काही ठळक बदल घडून आले जे मी आपल्यासमोर इथे मांडणार आहे. 


सर्वात महत्वाचा आणि पहिला बदल म्हणजे,आजच्या भारतात, जे लोक महत्त्वाच्या पदांवर आहेत ते क्वचितच कोणाचे तरी वारसदार आहेत. परंतु, 2014 पर्यंत जी परंपरा चालत आली, त्यात स्वातंत्र्योत्तर काळातील राजकारणी, बडे सरकारी अधिकारी, फिक्सर्स- ज्यांच्याजवळ मोठ्या घराण्यातील लोकांची ओळखी आणि कनेक्शन होते, असेच लोक हे प्रशासनात होते.


परंतु, 2014 नंतर त्यांच्याजागी नवीन लोक आले - जे चमक धमक न ठेवता कामावर लक्ष देतात आणि ज्यांची देशाची समज चांगली आहे, त्यांना अधिक चांगल्याप्रकारे लोकांमध्ये मिळून मिसळून काम करता येते, ते पक्षपात करीत नाहीत आणि पक्के राष्ट्रवादी आहेत.मुख्य म्हणजे ते हिंदू असल्याबद्दल त्यांना चीड़ येत नाही आणि सोबतच ते तंत्रज्ञान आणि विज्ञानाची  सांगड सहजपणे घालतात.


हा एक नवीन भारत आहे, ज्याची "मोदींचा भारत" अशी व्याख्या केली जाते आणि त्याला सामाजिक आधार बनवून कार्यक्षम वितरण, उद्योजकता आणि स्पर्धात्मक बाजारपेठेवर भर देतो. दुसरा मोठा बदल म्हणजे, 2014 पूर्वी असलेली भ्रष्टाचाराची लाट आता ओसरत आहे.


जेव्हा 2014 ला मोदींनी कार्यभार स्वीकारला त्यावेळी राजकीय भ्रष्टाचाराने हिमालयाची उंची गाठली होती.

उदा: 2जी, कोल, कॉमनवेल्थ, स्पेक्ट्रम, इत्यादी.


कोळसा घोटाळ्यात तर स्वतः तत्कालीन पंतप्रधान श्री मनमोहन सिंह यांना सुप्रीम कोर्टात हजर राहण्यास सांगितले गेले. यावरूनच आपल्याला 2014 पूर्वीच्या घोटाळे-भ्रष्टाचार यांची व्याप्ती लक्षात येते.

   

त्यामुळेच हे सर्व नको होते म्हणून सामान्य जनतेने 2014 ला श्री नरेन्द्र मोदी यांना प्रधानमंत्री म्हणून निवडले. 


मोदींनी भ्रष्टाचार पूर्णपणे  संपवला असे मी म्हणनार नाही.

परंतु त्यांनी केंद्रीय स्तरावरील निर्णय ठीक केले. 


उदाहरणार्थ, माजी पंतप्रधान राजीव गांधी यांनी संसदेत सांगितले की, ते जेव्हा 1 रुपया केंद्रस्तरावरुन ते पाठवतात तेव्हा गरिबांना खाली पोहोचतपर्यंत फक्त 15 पैसे मिळतात. 


यामध्ये मोदीजींनी आधारकार्ड आणि जनधन खाते यांचा वापर करून गरिबांच्या हक्काचे पैसे त्यांना मिळावे म्हणून, हे सुनिश्चित करण्यासाठी तंत्रज्ञानाचा वापर केला. ज्यातुन भ्रष्टाचाराला आळा बसला. 


यासोबतच फौजदारी किंवा भ्रष्टाचाराच्या खटल्यांना सामोरे जात असलेले सरकारी कर्मचारी, अशा नोकरशाहीतील वाईट घटकांना काढून टाकण्याच्या प्रक्रिया केल्या गेल्या. जेणेकरून स्वच्छ आणि पारदर्शक प्रशासन देता येईल.


2019 जूनपासून मोदी सरकारने दुसऱ्यांदा कार्यभार स्वीकारल्याच्या काही काळानंतर भ्रष्टाचारासह विविध आरोप असलेल्या कमिशनर-रँक अधिकाऱ्यांसह किमान 64 कर्मचार्‍यांना केंद्रीय प्रत्यक्ष कर मंडळाने (सीबीडीटी) सक्तीने सेवानिवृत्ती दिली आहे.


इतकेच नाहीतर माजी केंद्रीय मंत्री श्री पी. चिदंबरम यांना घोटाळ्याच्या आरोपात सीबीआईला अटक करण्याची मोकळीक ही दिली.

ही काही उदाहरणे आहेत, आणखीही देता येतील! 


यशाचा टप्पा अजूनही खुप दूर आहे. परंतु कमीतकमी भारताने भ्रष्टाचाराला मागे सारण्यास सुरुवात केली आहे. 


हे सगळे कसे शक्य झाले? 


राजकीय इच्छाशक्तीमुळेच हा फरक झाला आहे. 


तिसरा मोठा बदल हा मोदी सरकारने विशेषतः दुसर्‍या कार्यकाळात केलेला आहे तो म्हणजे, राष्ट्राला एकजुट करणे.


मोदींच्या अगोदर भारताचे राजकारण हे कोणतेही सरकार असले तरीही नेहरूवादी धोरणानेच पुढे नेले गेले आणि निवडणूक जाहिरनामा हे फक्त पोकळ आश्वासन असलेला कागद ठरला. 


परंतु, मोदींच्या काळात तिहेरी तलाक कायदा, कलम  370 रद्द करणे आणि नागरिकत्व कायद्यात सुधारणा, हे सर्व केले गेले.


त्यामुळे मोदींनी भाजपच्या जाहीरनाम्यातील घोषणाना आश्‍वासनांचा कागद न ठेवता त्याला देशाच्या धोरणात रूपांतरित करून, आपल्या निवडणूक जाहिरनाम्यातील गोष्टी पूर्णत्वास नेल्या. 


शेवटचा नमुद करण्यात गरजेचा असलेला आणि तितक्याच महत्वाचा म्हणजे बऱ्याच वर्षापासून रखड़लेले अखंड भारतातील सर्वांचे श्रद्धास्थान राम मंदिर. 


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अयोध्येत राम मंदिरासाठी सुप्रीम कोर्टाच्या मंजुरीबरोबरच मोदींनी सरकार आणि भारत हे रामराज्य व्हावे, ही  संकल्पना मनोमन पूर्णत्वास यावी, असे वाटणाऱ्या लोकांमध्ये यशस्वीरित्या परस्पर संबंध निर्माण केला.  

हीच गोष्ट साधताना श्री अटलबिहारी वाजपेयी व त्यांचे सरकार यांना अस्वस्थता आलेली होती आणि त्यातून  त्यांचा वैचारिक आधार असलेल्या लोकांमध्ये दुरवस्था निर्माण झाली होती. 


परंतु, मोदी सरकारच्या काळात आश्चर्यकारक 


आंतरिक सुसंवाद  सरकार आणि वैचारिक आधार असलेल्या लोकांमध्ये दिसून आला. 


मोदींच्या प्रत्येक निर्णयातील चांगले आणि वाईट, यावर नक्कीच चर्चा होऊ शकतात.

परंतु जे आश्चर्यकारक होते ते म्हणजे त्यांचे धैर्य.  


राजकारणात बरेच  उतार-चढ़ाव असूनही भारतीय जनता पक्षाची उर्जा आणि चैतन्य का अबाधित राहिले आहे? 

हे देखील यातून स्पष्ट केले जाऊ शकते. 


मोदींनी आजघडीला देशातील जनतेच्या मोठ्या परिवाराला आपल्या सरकारचा भागधारक बनविला आहे आणि भारताचे पुनर्निर्माण केले जाऊ शकते, अशा अपेक्षेत बरेच हात निस्वार्थीपणे त्यांच्या मागे, पर्यायाने भाजपाच्या मागे प्रत्यक्ष आणि अप्रत्यक्षपणे उभे आहेत, यात शंकाच नाही.

त्यातील एक अप्रत्यक्ष हात मी सुद्धा आहे, हे मी इथे आवर्जून नमुद करु इच्छीतो. ( No matter the Government, I will always sit in Opposition )


या 7 वर्षात मोदींनी सार्वजनिक जीवनातल्या अनेक प्रथा बदलल्या आहेत आणि अजुनही हे काम प्रगतीपथावर आहे. 

हे घडवून आणण्यासाठी, 


मोदींच्या भारताला 2024 मध्ये  नवीन उंची गाठावी लागेल. 


धन्यवाद!! 












Congress Toolkit Exposed

 


संपूर्ण देश कोरोनाशी लढत आहे आणि कोंग्रेस मात्र गलीच्छ राजकरणात मग्न आहे हे #CongressToolkit वरून सिद्ध झालं. पानं वाचताना मला या पक्षाचे समर्थन करणाऱ्या लोकांच्या बुद्धीच कीव आली. देशामध्ये अराजकता माजवणे हा काँग्रेस चा डाव मुळीच नवीन नाही.


या आधीही अनेक प्रसंगी स्वतःच्या राजकीय फायद्यासाठी असे केलेलेच आहे. एक एक पान वाचताना प्रत्येक पॉईंट हा केवळ देश विरोधी अजेन्डा राबवण्यासाठीच लिहिला गेला आहे हे दिसून आले.

पान क्र.१ वरील ठळक मुद्दा : "हिंदूंच्या कुंभ मेळ्याला "SUPERSPREADER " म्हणा परंतु इतर धर्माच्या धार्मिक सभांना काहीही बोलू नका अथवा त्यावर काही टीका टिपणी करू नका असे त्या AICC च्या डॉक्युमेंट मध्ये सांगितले गेले आहे. यावरून हिंदू विरोधी कोण आहे हे सुजाण नागरिकांना कळेलच. 

पान क्र.१ वरील दुसरा मुद्दा: "आंतराष्ट्रीय स्तरावर विविध (मैत्री असलेल्या) पत्रकारांना हाताशी धरून कुंभ मेळ्याचे कारण वापरून भाजपाची बदनामी करा." आंतराष्ट्रीय स्तरावर जेव्हा बदनामी होते तेव्हा ती पक्षाची नाही ती देशाची होते एवढं साधं यांना समजत नाही ? 
NYTimes , AUSTRALIA TODAY अश्या आंतराष्ट्रीय वृत्तपत्रात भारताची बदनामी करण्यामागे कोणाचा हात होता हे माहित होतेच पण आता स्पष्ट झाले.
पान क्र.१ चौथा मुद्दा: "पक्षाचे समर्थन करणाऱ्या लोकांनी केवळ कुंभ मेळ्याचेच चित्र समाजात पसरवावीत जेणेकरून लोकांना कळेल कि भाजपा हिंदूंचा वापर करून घेत आहे आणि असे करताना ईद आणि इतर सणांचा उल्लेख करू नये." यात जातीयवादी राजकीय पक्ष कोण ? भाजपा कि काँग्रेस ? 
पान क्र.३ : मुद्दा II : PM CARES बद्दल प्रश्न : 
PM cares मध्ये वापरले गेलेल्या पैस्याबद्दल इंटरनेट वर अनेक अनेक लेख आहेत आणि त्या लेखांमधील गोष्टी सिद्ध करण्यासाठी म्हणून पुरावे देखील आहेत, 

परंतु या टूलकिट मध्ये नमूद केले आहे कि निवृत्त प्रशासनकर्त्यानी मोदींना प्रश्न या बद्दल प्रश्न विचारावेत, एखादा Celebrity असेल तर त्याला या बद्दल ट्विट करण्यासाठी प्रवृत्त करावे आणि शेवटी CONGRESS प्रशासित राज्यांमध्ये "न" वापरले गेलेल्या व्हेंटीलेटर्स ला 'DEFECTIVE ' म्हणून सरकार वर खापर फोडावं. काँग्रेस समर्थकांना हे सगळं वाचून लाज वाटली पाहिजे कि आपण कोणत्या खोट्याचे समर्थन करत आहोत.

पान क्र.३ : मुद्दा III : गुजरात. 
"मोदी गुजरात चे आहेत म्हणून गुजरात ला स्पेशल ट्रीटमेंट मिळत आहेत अश्या पद्धतीच्या बातम्या, चित्र समाजात पसरवावीत जेणेकरून लोकांना असे दाखवता येईल कि भाजपा केवळ गुजरात आणि भाजप शासित राज्यांसाठी काम करत आहे". काय पातळी गाठली आहे या पक्षाने ? 

पान क्र.३ : मुद्दा IV : "दिल्ली मध्ये होणाऱ्या सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट बद्दल बदनामीकारक पोस्ट टाकून केंद्र कश्या पद्धतीने पैसे दुसरी कडे खर्च करत आहेत ह्यावर भर देणं. हा प्रकल्प म्हणजे मोदींच्या आत्मपूजक स्वभावाचे प्रतीक म्हणून लोकांपर्यंत पोहोचवणे." 

आता या प्रकल्पाचा आणि कोरोनाचा काहीही संबंध नाही हे वेळोवेळी सिद्ध झालं आहे तरीही निर्लाज्जासारखे स्वतःचा राजकीय फायदा घेण्यासाठी हे लोक समाजात संभ्रम निर्माण करत आहेत.
पान क्र.४ : मुद्दा V : (D ) "ओळखीच्या हॉस्पिटल मध्ये बेड ब्लॉक करून ठेवणे जेणेकरून काँग्रेस च्या मार्फत कोणी मदत मागितली तर त्यांना ती देता येईल आणि सोशल मीडियाच्या माध्यमातून काँग्रेस कसे काम कारात आहे या बदल सांगता येईल" 
आता हे काँग्रेस चेच मूर्ख आणि निर्बुद्ध समर्थक आहेत हे येनकेनप्रकारेण संघाला बदनाम करत आहेत. निरपेक्ष भावनेने, पक्षीय, जातीय आणि धार्मिक भेद सोडून संघ काम करीत आहे हे मी स्वतः पहिला आहे. पान दुर्दैवाने आपल्या समाजात असे समाजकंटक असल्यामुळे सत्य काय हे लोकांपर्यंत पोहोचत नाही.
पान क्र.४ : मुद्दा VI : मोदींच्या वाढत्या लोकप्रियतेमुळे आपल्याला एक धोका आहे तर आंतराष्ट्रीय पातळीवर असलेल्या नामवंत वृत्तपत्रांमधून भाजपच्या नाकर्तेपणाचा बातम्या आपल्या पत्रकारांना लिहायला भाग पाडा, याच्याने आंतराष्ट्रीय स्तरावर भाजपाची बदनामी होईल, 

पण पुन्हा वर नमूद केल्यामुळे ह्यामुळे भारताची बदनामी होत आहे हे या मुर्खांना दिसत नाही. मुद्दामहून "अंत्यसंस्कारचे" DRAMATIC चित्र वापरावेत. खर्यार्थाने "टाळूवरचे लोणी खाणारे" हे काँग्रेसी निघाले.
पान क्र.४ : मुद्दा VI (e ) : नवीन स्ट्रेन ला 'INDIAN STRAIN " म्हणावे जेणेकरून भाजपाला बदनाम करता येईल. या काँग्रेस नालायकांना एकदाही 'WUHAN VIRUS " म्हणता आला नाही पण आज हेच लोक भारताची बदनामी करण्यासाठी आणि स्वतःची राजकीय पोळी भाजण्यासाठी "INDIAN STRAIN " म्हणत आहेत !

यात काही नवीन नाही कि काँग्रेस ने कायमच देशातील अस्थिरतेचा वापर करून स्वतःचा राजकीय फायदा करून घेतला आहे परंतु आज जेव्हा संपूर्ण देशच नाही तर संपूर्ण जग कोरोनाशी लढत आहे तेव्हा मात्र हे लोक राजकारणासाठी नीच पातळी गाठत आहेत.
काँग्रेस अनेक वेळेला अनेक ठिकाणी EXPOSE झाली आहे आता मूळ प्रश्न हा आहे कि यावर केंद्र सरकार आणि भाजपा नेते काय निर्णय घेणार ? 

आम्हाला केवळ "कडी निंदा' नको आहे तर यावर लवकरात लवकर ACTION हवी आहे. 



आखाजी

 


       

             विसंस्कृतीचं दर्शन घडवणारा देश म्हणजे आपला भारत देश. त्यातल्या त्यात आपण भारतीय म्हणजे सण आणि उत्सव प्रिय आहोतच. विविध संस्कृतीने, विविध चालीरीतींनी, धार्मिक रूढी, धार्मिक परंपरांनी नटलेला आपला देश आहे. खान्देशी संस्कृती तर विचारायलाच नको. खान्देश हा प्रांत उत्तर भारत आणि दक्षिण भारत यांच्या सरहद्दीवर पसरलेला आहे. पूर्वी म्हणे या भागात ‘कान’ नावाच्या राजाचे साम्राज्य होते. म्हणून या भागाची ओळख ‘कानदेश’ अशी होती. कालांतराने कानदेशाचं रूपांतर खान्देश म्हणून झालं असावं किंवा त्याचा अपभ्रंश झाला असावा, असा एक तर्क आहे. काही ठिकाणी तर असेही वाचायला मिळाले की, खान्देशात पूर्वी ‘आहेर’ राजा होऊन गेला आणि त्याच कालावधीत ‘अहिराणी’ भाषेचा उगम झाला. ‘कान्हा’चा म्हणजे कृष्णाचा देश, म्हणून खानदेश असाही अर्थ सांगितला जातो. अर्थात, असे अनेक तर्क-वितर्क, अनेक कल्पना आपल्याला खान्देशाबाबत वाचायला मिळतात. खान्देशात धुळे, जळगाव आणि नंदुरबार या जिल्ह्यांचा आणि मालेगाव जवळच्या काही प्रांताच समावेश होतो. इथली ‘अहिराणी’ ही बोलीभाषा अतिशय गोड, मधुर आणि खूप रसाळदेखील आहे.


            वैशाख महिन्यातल्या शुक्ल पक्षातील तृतीयेला येणारा ‘अक्षय्य तृतीया’ म्हणजे ‘आखाजी’ हा महिलांचा अतिशय जिव्हाळ्याचा आणि प्रिय सण! सासरी गेलेली प्रत्येक मुलगी या सणाला आपल्या माहेरी येणार म्हणजे येणारच. आखाजीसाठी आपला भाऊराया आपल्याला घ्यायला केव्हा येणार, याकडे तिचे डोळे लागलेले असतात. ‘रोहिणी’ आणि ‘कृतिका’ ही नक्षत्रे या तिथीला विशेष महत्त्व प्राप्त करून देतात. चैत्र शुद्ध तृतीया ते वैशाख शुद्ध तृतीया या एक महिन्याच्या कालावधीत सर्वत्र वसंत ऋतूचे साम्राज्य असते. झाडे बहरलेली, आकाश निरभ्र असं मस्त वातावरण सर्वत्र बघायला मिळते. अशा वातावरणात सारं काही सकारात्मक असतं आणि म्हणून कोणत्याही चांगल्या गोष्टीची सुरुवात करण्यासाठी ‘अक्षय्य तृतीया’सारखा पवित्र दिवस नाही, असं म्हटलं जात असावं. व्यापाराचा शुभारंभ किंवा कोणत्याही प्रकल्पाची सुरुवात म्हणूनच मुद्दाम अक्षय्य तृतीयेला करण्यात येते.

                हा सण म्हणजे मुलींचा, महिलांचा आनंदाला उधाण आणणारा सण! चैत्र पौर्णिमेला ‘गौराई’ या देवतेची स्थापना मुली आपल्या घरी करीत असतात. गौराई म्हणजे पार्वती. आखाजीच्या आदल्या दिवशी मुली पारंपरिक पोषाख करून कुंभाराच्या घरी गाणी म्हणत, टिपऱ्या खेळत जातात. कुंभाराने शंकर आणि पार्वतीच्या छान मातीच्या प्रतिकृती बनवलेल्या असतात. पारंपरिक ग्रामीण कलेचा एक उच्च आविष्कार त्यातून पाहायला मिळतो. मुली या मूर्ती वाजतगाजत, गाणी म्हणत अतिशय उल्हसित वातावरणात घरी आणतात. घरात एका कोनाड्यात तिची स्थापना करतात. मनोभावे पूजा करतात. त्या पूजेत कसलीही कसर बाकी राहू दिली जात नाही. गौराईला सांजोऱ्या, शेवया, गुळाचा नैवेद्य दाखवला जातो. आखाजीच्या दिवशी गौराईमातेच्या स्नानासाठी नदीवरून, विहिरीवरून, मळ्यातून पाणी आणतात. त्या वेळी गाणीही गात असतात. टिपऱ्या खेळत असतात. डोक्यावर चुंबळ, त्यावर तांब्या, तांब्यात पाणी आणि आंब्याची पाने आणि पारंपरिक गाणी म्हणत या मुली आपल्या घरी परततात.


                खान्देशात प्रत्येक सून, सासुरवाशीण आखाजीला आपल्या माहेरी येते. असा एकही पिता नसेल जो आपल्या लेकीला या सणाला घरी आणत नाही. प्रत्येक सासुरवाशीण मुलीला आपल्या माहेरची ओढ या सणासाठी असते. पुढील गाण्याच्या ओळीतला अर्थ बघा. त्या गाण्यात ती भावाची किती आतुरतेने वाट पाहात असते, याचा अंदाज येईल.

‘भाऊ मना टांगाज टांगाज जपुस रे बा

बहीन मनी गय्यर गय्यर रडस रे बा’

या पारंपरिक अहिराणी गीतांचा कर्ता कोण, या गाण्याला कुणी स्वरबद्ध व तालबद्ध केलंय याचा थांगपत्ता नाही. हे वाङ्मय मौखिक स्वरूपातच टिकून आहे. पुढील गीतात गौराईच्या साज शृंगाराचे वर्णन करण्यात आले आहे.

चैत्र वैशाखाचं उन्हं माय, वैशाखाचं उन्हं

खडके तापुनी झाली लाल व माय तापुनी झाली लाल

आईच्या पायी आले फोड व माय पायी आले फोड

आई पायी बेगडी वाव्हन व माय बेगडी वाव्हन...

उत्तर भारतात या कालावधीत या सणाला वेगळं नाव असलं तरी गौरीपूजनाचा 1 महिन्याचा कालावधी येथे गणला जातो. मथुरा, वृंदावन, काशी, द्वारका येथे या सणाला फार महत्त्व आहे. अशी कल्पना कदाचित असावी की, तारुण्यात पदार्पण केलेली गौरी अक्षय्य तृतीयेनंतर श्वशुरगृही पाठवली जाते. हाच कालावधी शुभ मानतात. वसंत ऋतूचे आगमन, फुला-फळांना आलेला बहर. सृष्टीने दिलेले हे वरदानच असते. निसर्गाचा रंगच काही और झालेला असतो. आंब्याचा मोसम म्हणून या दिवशी पुरणाची पोळी आणि आंब्याचा रस यांचा नैवेद्य दिला जातो. पुरणाची पोळी हे तर खान्देशच्या लोकांचे अत्यंत मनापासून आवडणारे पक्वान्न. या दिवशी पुरणाच्या पोळीला फार महत्त्व असते. एक मोठे अर्धगोलाकृती मातीचे भांडे ज्याला खापर म्हणतात, त्यावर पुरणाची पोळी करता येणं म्हणजे खऱ्या अर्थाने सुगरण असे समजले जाते. खेड्यातील घरांमध्ये ज्या कोनाड्यात गौराईची स्थापना केली जाते तो कोनाडा विविध रंगांनी सजवला जातो. गौराई सजवण्याची मुलींमध्ये जणू स्पर्धाच लागलेली असते. गौराईला फुलांचा हार वगैरे काही लागत नाही. टरबुजांच्या बियांचा हार, शेंगा, गोडशेव यांचे हार गुंफण गौराईला अर्पण केले जातात. लाकडांची दोन हात असलेली एक साधी सरळ गौराई असते. आंब्याचा मोसम असल्यामुळे कैऱ्यांचा घड, रामफळ गौराई पुढे विशिष्ट पद्धतीने टांगलेले असतात.


               उंच व मजबूत झाडांना झोके बांधून तरुण मुली, सासुरवाशिणी, आपल्या विविध रंगी पारंपरिक पोषाखात झोक्यावर गाणी गातात. त्या आपल्याच धुंदीत अगदी मग्न असतात. नऊवारी रंगीत शालू, खान्देशी पद्धतीने अलंकार, केसांचा अंबाडा, नाकात नथ या आपल्या पारंपरिक पोषाखांनी नटून टिपऱ्याच्या तालावर गाणे म्हणत त्यांच्यासह सारा परिसर बेभान होऊन धुंद झालेला असतो. कोणत्याही सणामागे किंवा तो साजरा करण्यामागे काही उद्देश असतात. धार्मिक भावना तर जोपासल्या जातातच; पण या निमित्ताने अनेक कुटुंब एकत्र येऊन गुण्यागोविंदाने, आनंदाने एकमेकांना भेटून आपला आनंद द्विगुणित करतात. अक्षय्य तृतीयेची गाणी खान्देशात खेडोपाडी मुली गातात. विविध प्रकारचे विषय, वर्णन या पारंपरिक गीतांमध्ये असतात. वसंत ऋतूत हवा छान असते. त्यामुळे झोपाळ्यांना उधाण आलेले असते. वृक्ष, वेलीसुद्धा जणू डोलत असतात.

‘आथानी कैरी तथानी कैरी, कैरी झोका खाय वं.

कैरी तुटनी, खडक फुटना झुय झुय पानी व्हाय वं.

झुय झुय पानी व्हाय तठे कस्साना बजार वं

झुय झुय पानी व्हाय तठे, टिपºयांस्ना बजार वं

माय माले टिपºया ली ठेवजो, ली ठेवजो बंधू ना हाते दी धाडजो’

ही सगळी गाणी म्हणजे लोकगीतांचा, पारंपरिक गीतांचा उत्कृष्ट नमुना म्हणता येईल.

साती कुंड्यावरी कुंड्यावरी नागीन पसरनी

तठे मनी गवराई, गवराई काय काय इसरनी?

तोडा बिडा काई नई गाडीले,

गाडीले रंग नई, समईले तेल नई

धवया नि पिव्या नंदी, थुई थुई नाचे.

किंवा आणखी हे पुढील गीत बघा.

कायी हेरनं, हेरनं

जांभुय पानी व माय

तठे मनी मायज मायज पानी भरे व माय

किती किती गाणी गातात या मुली? झोक्यावर, फेर धरून, टिपरीच्या तालावर अगदी धम्माल येते या आखाजीच्या सणाला. अक्षय म्हणजे न संपणारे. म्हणून या दिवशी जलकुंभदान करतात. बऱ्याचदा सण साजरे करताना, परंपरा जपताना त्यामागील हेतू समजून घेतले जात नाहीत. त्यामुळे सण साजरे न करणे हे पुरोगामीत्वाचे लक्षण मानण्याची परंपरा आली आहे. त्याऐवजी हे हेतू समजून घेऊन सण साजरे केले तर त्यातला आनंद आणखी किती तरी पटींनी

नक्कीच वाढेल.

आरक्षण आणि सामाजिक न्याय.

 



👉🏼 आरक्षण आणि सामाजिक न्याय.


एखाद्या कोणत्याही उच्च घोषित जातीच्या विद्यार्थ्याला आवडीच्या कॉलेजमध्ये किंवा नोकरीस पात्र असताना देखील नोकरीसाठी जागा नाकारली जात असेल तर आपण याला काय म्हणाल?


हा सामाजिक न्याय म्हणता येईल का?

आता याच खर उत्तर बहुतांश क़ोणी देणार नाही आणि राजक़ारणी तर मुळीच नाही.

आरक्षणाच्या समर्थकांचा यावर युक्तिवाद असा आहे की समाजातील काही घटकांवर हजारो वर्षांपासून अत्याचार होत होते - म्हणूनच त्यांना समाजात उभे राहण्यासाठी मदतीचा हात आवश्यक आहे. जातीनिहाय आरक्षणाच्या पुरस्कर्त्यांनी डॉ.आंबेडकरांनी ज्या समाजाचे स्वप्न पाहिले होते त्या समाजाला आपण पूर्ण करु शकलो नाही, असा नेहमीच स्टँड घेतला.

माफ़ करा पण डॉ. आंबेडकर हे जाती-आधारित आरक्षण व्यवस्थेचे समर्थक होते हा ग़ैरसमज मला दूर करण्याची इथ परवानगी द्या.

डॉ. आंबेडकरांची मुख्य भाषणे व त्यातील मुद्दे तुम्ही काळजीपूर्वक वाचले तर तुम्हाला लक्षात येईल  की त्यांच्या दृष्टीने आरक्षण हे सामाजिक संशोधनावर अभ्यास करुन आणि परीक्षण करुन राबवले गेले पाहिजे होते जेणेकरुन आरक्षणाचे फायदे खरोखर गरजु असलेल्या लोकसंख्येपर्यंत पोचतील.


डॉ. आंबेडकरांच स्पष्ट मत होते की आरक्षणाची रचना  ही गरजु लोकांसाठी आहे मलई खाणाऱ्या लोकांसाठी नाही. आरक्षणाचा फ़ायदा अशा लोकांना जाता कामा नये जे त्यांच्या उत्पन्ना मूळे आधीच समृद्ध आहेत.सो बत त्यांनी राजकीय आरक्षण व्यवस्थेचा दहा वर्षानंतर आढावा घेण्याची तरतूद ही केली होती.

आता सध्य पारिस्थिती पाहता गोष्टी अशा वळणावर आल्या आहेत की आज प्रत्येक समुदायाला / जातीला असे वाटते की त्यांच्यावर अत्याचार झाला आहे आणि म्हणूनच त्यांनी स्वतःसाठी आरक्षणाची नव्याने मागणी करायला सुरुवात केली आहे. जे खरच एका दृष्टिने दुर्देवी आहे.

एक सर्वसामान्य प्रश्न हा आहे की एका जातीच्या अथवा जमातीच्या “सर्व लोकांची” मागास असण्याची पातळी “सारखी” कशी असेल? असमानला समान मानून त्यांना समान संधी देणे हा एक प्रकारचा अन्याय आहे; म्हणून समानता नव्हे तर “समता” हवी असे माझे स्पष्ट आणि वैयक्तिक मत आहे. 

पूर्वी आपल्याकडे आरक्षणाची एखदयाला खरोखरच गरज आहे की नाही हे स्पष्टपणे ठरवण्यासाठी आपल्या कड़े तसे आधुनिक तंत्रज्ञान किंवा पद्धती नव्हत्या पण आज आपल्याकडे ते आहे , सर्व साधने उपलब्ध आहेत , आपला आयकर क्रमांक/आधार क्रमांक सुद्धा एखाद्याची आवश्यक माहिती मिळवण्यासाठी  पुरेसा आहे

मला असे वाटते की जर एखादी व्यक्ती आर्थिकदृष्ट्या मागासलेली असेल किंवा ग्रामीण पार्श्वभूमीतून आली असेल आणि त्या व्यक्तीला उच्च शिक्षणाची इच्छा असेल, जोडीला गुणवत्ता सुद्धा असेल तर नक्कीच त्यांना प्राधान्य दिलेच पाहिजे ते ही “जात-धर्म न बघता”


अजून एक सुचवता येईल तसेच ज्यांनी आजपर्यंत आरक्षणाचा फायदा घेऊन उच्च शिक्षण,नाेक-या मिळविल्या आणि ज्यांची आर्थिक स्थिती चांगली आहे अशा लाेकांनी स्वत:हून आरक्षणाचा फायदा न घेता त्यांच्या समाजातील इतर बांधवांना ताे फायदा कसा मिळेल हे पहावे किंवा तशी एक अधिकृत प्रणाली यावी

आरक्षणाचे अर्धवट निकष आणि त्यामुळे निर्माण झालेली स्पर्धा आणि त्यातून निर्माण झालेली अन्यायची भावना याचा फ़ायदा परत नेते मंडळी / व्यापारी शिक्षण संस्था घेतात आणि यातूनच एखाद्या कॉलेज / प्रशाले ला कृत्रिम/ आवाजवी महत्व प्राप्त होते आणि मग देणग्या भ्रष्टाचार हे सगळे ओघाने आलेच.

नेते किंवा राजकीय पक्ष जाती-आधारित आरक्षण धोरणे संपवण्याविषयी बोलतील पण करणार नाही ही वस्तुस्थिति आहे कारण भारतातील अंदाजे ७० टक्के लोक आरक्षित प्रवर्गात मोडतात आणि आपआपली वोट बँक प्रत्येकाला प्रिय आहे हे कटु आणि सर्वश्रुत सत्य आहे.

आता इतकी दशके उलटली तरी आरक्षण अजून सुरू ठेवावे लागत असेल तर आरक्षण राबविण्यात आपण खरोखरच यशस्वी झालो का? डॉ. आंबेडकरांनी तेव्हा ही तरतुद बनवताना याच पद्धतीच्या स्थिती चे स्वप्न पहिले असेल का ? याबाबत चिंतन करुन विचारसरणी बदलली गेली पाहिजे हे त्रिवार सत्य आहे ! 


शेवटी एकच सांगायचय

आरक्षणाच्या कुबड्या कोणालाही न देता माननीय न्यायव्यवस्थेने #समान_नागरी_कायदा आणून सर्व नागरिकांना समान न्याय द्यावा. 🙏


#India




केरळ आणि परिवर्तन | Kerala Story

  केरळ आणि परिवर्तन !



' असोल पोरीबोर्तन ' हे वाक्य सध्या ट्विटर, फेसबुक आणि न्यूज चॅनेल वर गाजत आहे. बंगाल मध्ये खऱ्या अर्थाने परिवर्तन होणं गरजेचं आहे पण त्याहून महत्वाचे राज्य मला वाटतं जिथे परिवर्तनाची गरज आहे ते म्हणजे ' केरळ ' आणि याची कारणं मी इथे नमूद करतो. 

केरळ मध्ये आत्ता ६०% हिंदू आहेत, तर १८% ख्रिश्चन, १६ % मुसलमान आणि बाकीचे ६%. एकेकाळी हिंदू बहुसंख्य असलेले राज्य हळू हळू करत हिंदू अल्पसंख्य होत चाललं आहे हे दिसत आहे आणि याचे कारण म्हणजे इथले बदललेले लोकसंख्याशास्त्र अर्थात DEMOGRAPHY.

टिपू सुलतान च्या काळात या भागाचे लोकसंख्याशास्त्र हिंदूंच्या विरोधात बदलले. जे म्हणून इस्लाम स्वीकारत नसे त्यांना तो मारत असे, मग ते हिंदू असो किंवा ख्रिश्चन आणि याला इतिहास साक्ष आहे. या सगळ्यात हळू हळू करत इस्लामिक धर्मांधांचे आणि ख्रिश्चन मिशनरीज चे बळ या भागांमध्ये वाढत गेले.

१९५६ ला केरळ या राज्याची स्थापना झाली आणि स्थापनेपासून इथे कायमस्वरूपी कम्युनिस्ट विचारधारेच्या आणि इस्लामिक विचारधारेच्या पक्षांचे सरकार राहिले आहे. या संपूर्ण कालखंडात हिंदूंच्या बाजूने मत मांडणाऱ्या लोकांचे किती बळी गेले आहेत हे आपण पहिलेच आहे.

रास्व संघाचे अनेक कार्यकर्ते, भाजपा चे अनेक कार्यकर्ते अनेक वेळेला राजकीय हत्येचे बळी पडले आहेत. कम्युनिस्ट पार्टीचा रक्तरंजित इतिहास सर्वश्रुत आहे. राजकीय विरोधकांना मारणे आणि गरीब, दीनदुबळे, दलित या सगळ्यांच्या रक्षणाचा आव आणणे हे त्यांच्या रक्तातच आहे.

कुम्मणम राजशेखरन, यांनी नमूद केले आहे कि LDF आणि युती मध्ये सहभागी असलेल्या पक्षांनी , RSS  आणि BJP  च्या २५६ कार्यकर्त्यांना मारले आहे. पोलिटिकल किलिंग्ज हे ज्या ज्या ठिकाणी म्हणून कम्युनिस्ट पक्ष अस्तित्वात असतो त्या त्या ठिकाणी घडत आहेत ते इतिहास सांगतोच.

या पुढे जाऊन संपूर्ण देशातून सगळ्यात जास्त ISIS मध्ये जाणारा तरुण वर्ग हा केरळ मधला आहे. देशातील सगळ्यात सुशिक्षित असलेला प्रदेशमधून एवढे लोक ISIS मध्ये जातातच कसे ? आणि हीच जर तुमची LITERACY ची परिभाषा असेल तर मग दुर्दैव आहे. 

२०१२ ते २०१७ मध्ये NIA च्या एका रिपोर्ट प्रमाणे १७७ तरुण तरुणी ISIS मध्ये सहभागी होण्यासाठी म्हणून सीरिया किंवा इतर इस्लामिक राष्ट्रात जाऊन पुन्हा भारतात इतरांना प्रशिक्षण देण्यासाठी आले.

या चौकशी मध्ये पकडल्या गेलेल्या एकाने सरळ सरळ नमूद केले कि त्याचा उद्देश ' जिहाद ' करणे आहे आणि इथे ' दारुल- इस्लाम ' स्थापना करणे आहे. यावर राज्यसरकारने काय पाऊल उचलले ? काहीही नाही !

आणि आपण कोणीही हे विसरू नये कि खिलाफत चळवळी मध्ये ज्या तीन गावांच्या हिंदूंना मारले गेले ती तीन गावे आजही इस्लामिक धर्मांधतेचा विळख्यात जखडली गेली आहेत .  गावांचे नावे एर्नाड, वाळूवनाड आणि पोन्नानी.

लव्ह जिहाद थोथांड आहे म्हणणारे PFI ( पॉप्युलर फ्रंट ऑफ इंडिया ) या इस्लामिक संस्थेच्या वक्तव्यावर विश्वास  का ठेवत नाहीत हे माहित नाही.

सत्या सारीनी ( PFI च्या अंतर्गत असलेली एक संस्था ) च्या अध्यक्ष असलेल्या झैनाब हिने मान्य केले कि त्यांचा उद्देश ' अनेकांना खासकरून मुलींना इस्लाम स्वीकारण्यास भाग पाडणे हा आहे ". हे इंडिया टुडे च्या २०१८ च्या रिपोर्ट मध्ये नमूद आहे. 

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सत्या सारीनी ( PFI च्या अंतर्गत असलेली एक संस्था ) च्या अध्यक्ष असलेल्या झैनाब हिने मान्य केले कि त्यांचा उद्देश ' अनेकांना खासकरून मुलींना इस्लाम स्वीकारण्यास भाग पाडणे हा आहे ". हे इंडिया टुडे च्या २०१८ च्या रिपोर्ट मध्ये नमूद आहे. म्हणजे नकळत पणे काँग्रेस जी स्वतःला धर्मनिरपेक्ष पार्टी दाखवते ती सुद्धा या सगळ्यात सहभागी आहे.  केरळ मध्ये सापडले जाणारे तरुण जे दहशतवादी संघटनांशी थेट जोडले गेले आहेत, नंतर अशी घडणारी धर्मांतरे, हिंदूंची कमी होणारी लोकसंख्या, हिंदूंच्या त्यांच्या धर्मस्थळांवरती नसलेला अधिकार आणि HIGHEST LITERACY RATE या नावाखाली अनेक वर्ष केली गेलेली फसवणूक या सगळ्या गोष्टींकडे पाहता, इथे खर्यार्थाने परिवर्तनाची गरज आहे असं मला वाटतं. कम्युनिस्ट पक्ष असो...

किंवा जिहादी विचारांनी प्रेरित असलेले पक्ष एकाच माळेचे मणी आणि आपल्याला अजून एक मोठा धोका म्हणजे ' CHRISTIAN CONVERSIONS ' जी दक्षिण भारतात खासकरून तामिळनाडू आणि केरळ मध्ये फार मोठ्या प्रमाणावर  चालू आहेत, या सगळ्या गोष्टी थांबल्या पाहिजेत.

आशा करूया कि येत्या काही दिवसात ' GODS OWN COUNTRY ' मध्ये परिवर्तन घडेल.


सांगा कोणत्या महाराष्ट्राला प्रणाम करू?






" सुभेदाराची सून साडीचोळीनिषी पाठवणाऱ्या, रांझेच्या पाटलाचा चौरंग करणाऱ्या महाराष्ट्राला की,

महिलांना हरामखोर म्हणून, बेकायदा त्यांची घर तोडून व बलात्काऱ्यांना पाठीशी घालणाऱ्या मोगलाईला ?"

तलवारीच्या पातीवर स्वाभिमानच स्वराज्य निर्माण करणाऱ्या महाराष्ट्राला की,

जनतेच्या आशीर्वादाला भोकसून, लुबाडून, फसवूण सत्तेच्या खुर्चीत जाऊन बसेलेल्या ठाकरशाहीच्या मोगलाईला ?

शेतकऱ्यांच्या गवताच्याही पातीला धक्का न लावणाऱ्या महाराष्ट्राला की,

शेतकऱ्यांची कचाकचा वीज तोडून वसूली करणाऱ्या, खंडणीखोर वीजतोड व चमडीचोर मोगलाईला?

साधूसंत, लेकीबाळी, व्यापारी, व पोरांच्या गुण्यागोविंदात नांदणाऱ्या महाराष्ट्राला की

सांधूसंतांच्या दगड काठ्यानी ठेचून हत्या होणाऱ्या, येणाऱ्या पिढ्यांच्या ताटात अस्थिरता व अराजकतेच विष कालवणाऱ्या मोगलाईला?

आमचा प्रणाम छत्रपतींच्या साधूसंतांच्या महाराष्ट्राला

आमचा प्रणाम अटकेपार भगवा फडकवणाऱ्या, मराठ्यांच्या पेशव्यांच्या दैदिप्यमान इतिहासाला

पण आमचा प्रणाम पवार ठाकरे घराण्यांच्या गुलामी हुजरेगिरी करणाऱ्या मोगलाईला कधीच नाही.

महाराष्ट्र हा छत्रपतींच्या विचारांचा पाईक
पवार ठाकरेंना मुजरे घालन आमच्या रक्तात बसत नाही.
वीजतोड खंडणीखोर व चमडीचोरांना घरचा रस्ता दाखवल्याशिवाय महाराष्ट्र शांत बसणार नाही
जनतेच राज्य आल्याशिवाय महाराष्ट्र स्वस्थ बसणार नाही

"दरीदरीतून नाद गुंजला महाराष्ट्र माझा
गर्जा महाराष्ट्र माझा
जयजय महाराष्ट्र माझा"🚩

#महाराष्ट्रदिन 
#महाराष्ट्र_दिन
#गर्जामहाराष्ट्रमाझा