सावरकर - The Untold Truth |
#इतिहास में छुपाया गया एक सच ....
आइए जानते हैं एक ऐसे महान क्रांतिकारी के बारे में जिनका नाम और काम इतिहास के पन्नों से मिटा दिया गया। जिन्होंने ब्रिटिश हुकूमत के द्वारा इतनी यातनाएं झेलीं की उसके बारे में कल्पना करके ही इस देश के करोड़ों भारत माँ के कायर पुत्रों में सिहरन पैदा हो जायेगी।
जिनका नाम लेने मात्र से आज भी हमारे देश के राजनेता भयभीत होते हैं क्योंकि उन्होंने माँ भारती की निस्वार्थ सेवा की थी |
45 साल के महात्मा गाँधी 1915 में भारत आते हैं, 2 दशक से भी ज्यादा दक्षिण अफ्रीका में बिता कर। इससे 4 साल पहले 28 वर्ष का एक युवक अंडमान में एक कालकोठरी में बन्द होता है। अंग्रेज उससे दिन भर कोल्हू में बैल की जगह हाँकते हुए तेल पेरवाते है, रस्सी बटवाते हैं और छिलके कूटवाते हैं।
वो तमाम कैदियों को शिक्षित कर रहा होता है।उनमें राष्ट्रभक्ति की भावनाएँ प्रगाढ़ कर रहा होता है और साथ ही दीवारों पर कील, काँटों और नाखून से साहित्य की रचना कर रहा होता है।
उनका नाम था
#विनायक_दामोदर_सावरकर
वीर सावरकर.....
उन्हें आत्महत्या के ख्याल आते। उस खिड़की की ओर एकटक देखते रहते थे, जहाँ से अन्य कैदियों ने पहले आत्महत्या की थी। पीड़ा असह्य हो रही थी। यातनाओं की सीमा पार हो रही थी। अंधेरा उन कोठरियों में ही नहीं, दिलोदिमाग पर भी छाया हुआ था। दिन भर बैल की जगह खटो, रात को करवट बदलते रहो...
11_साल ऐसे ही बीते, कैदी उनकी इतनी इज्जत करते थे कि मना करने पर भी उनके बर्तन, कपड़े वगैरह धो देते थे उनके काम में मदद करते थे।सावरकर से अँग्रेज बाकी कैदियों को दूर रखने की कोशिश करते थे। अंत में बुद्धि को विजय हुई तो उन्होंने अन्य कैदियों को भी आत्महत्या से विमुख किया।...
लेकिन नहीं, महा गँवारों का कहना है कि सावरकर ने मर्सी पेटिशन लिखा सॉरी कहा, माफ़ी माँगी..
ब्ला-ब्ला-ब्ला
मूर्खों, काकोरी कांड में फँसे क्रांतिकारी रामप्रसाद बिस्मिल ने भी माफ़ी माँगी थी,
तो ?
उन्हें भी 'डरपोक' करार दोगे ?
बताओ ?
उन्होंने भी माफ़ी माँगी थी अंग्रेजों से,
क्या अब इस कसौटी पर क्रांतिकारियों को तौला जाएगा?
शेर जब बड़ी छलाँग लगाता है तो कुछ कदम पीछे लेता ही है। उस समय उनके मन में क्या था, आगे की क्या रणनीति थी- ये आज कुछ लोग बैठे-बैठे जान जाते हैं।
कौन ऐसा स्वतंत्रता सेनानी है जिसे 11 साल कालापानी की सज़ा मिली हो।
नेहरू?
गाँधी?
कौन?...
वीर सावरकर ने स्वयं के लिए माफी नहीं बल्कि
भारत के सभी कैदियों के लिए दया याचिका मांगी थी
प्रमाण प्रस्तुत है |
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इस समय देश में #वीर_सावरकर जी पर बहस चल रही है, झूंठ की फैक्ट्री चलाने वाले अपनी आदत के मुताबिक बढ़ा-चढ़ा कर झुठ फैलाने मे बेदम है | बार-बार हर बार साजिश के तहत यह झुठ फैलाया जाता है कि कालापानी जैसी सजा काटने वाले महान स्वातंत्र्य वीर सावरकर ने अंग्रेजो से माफी थी, जबकि सच्चाई यह है वीर सावरकर ने अपने लिए नही बल्की अंडमान जेल में बंद सारे कैदियो के लिए माफी मांगी थी |
मटमैला रंग का दस्तावेज का जो पीडीएफ फोटो है वह पुरी तरह से असली है |
Image Source : Google |
जिसे #संकेत_कुलकर्णी ने लंदन लाइब्रेरी से प्राप्त किया है उसे आप स्वयं पढ़ सकते है। जिसमें वह साफ शब्दों मे अंडमान जेल के सारे कैदियो के लिए दया याचिका की मांग कर रहे है।अब आप कहेगे कि सावरकर जी ने सारे कैदियो के लिए माफी याचिका क्यो मांगी थीतो इसके लिए आपको वीर सावरकर के लिखी अंग्रेजी में एक किताब पढ़ना होगा उस किताब का नाम है
उस किताब में टोटल 307 पेज है। यदी आपके पास पुरी किताब पढ़ने का समय नही है तो मत पढिए लेकिन इस किताब के पेज नम्बर 69,219,220 और 221 पढ़ने लायक है | मूल रुप से यह पुस्तक मराठी भाषा मे थी जिसे अंग्रेजी में अनुवाद किया गया है ।
खैर,
सावरकर जी को सारे कैदियों के लिए माफी की जरुरत क्यों पड़ गई थी ?
तो इसका उत्तर यह किताब देता है कि वें इंदू भुषण नामक कैदी के आत्महत्या से वें इतने दुखी हो गये थें कि उन्होनें सारे कैदियों के लिए माफी याचिका लिख डाली थी। आप इसका विवरण इस पुस्तक के Indu had hanged himself last night में पढ़ सकते है।
वीर सावरकर ने एक जगह इस पुस्तक में खुद लिखा है कि मैं एक बैरिस्टर होकर ऐसी गलती कैसे कर सकता था ?
यदि मैं पत्र लिखता तो अनेक अंग्रेज अफसरों के हाथों में जाती और वें इसे या तो दबा लेते नही तो फाड़ देते क्योंकी अंडमान का कालापानी के सजा मानवाधिकार के खिलाफ था, और उन्हे लज्जित होना पड़ता.
यह पुस्तक आपको Pdf मे गुगल पर उपलब्ध है इसे डाउनलोड कर सभी पढ़ सकते है My Transporation Life
खैर इस लेख में जो फोटो अपलोड किया गया है उसमें अंडरलाइन किए हुए शब्दों को पढ़ लिजीए सावरकर जी ने अपने लिए नही ब्लकि अंडमान जेल में बंद सारे कैदियों के लिए माफी याचिका भेजी थी
गांधी से लेकर इंदिरा तक ने सावरकर जी को राष्ट्रवादी और भारत की वीर सन्तान ही कहा है और इंदिरा ने 1970 में सावरकर जी पर डाक टिकट से लेकर अपने निजी खाते से 11000 रुपये उनके ट्रष्ट को डोनेट किये थे |
पर अब कांग्रेस को सत्ता में बने रहने के लिए मुस्लिमो का तुष्टीकरण अनिवार्य दिखाई देता है इसलिए कांग्रेस हर वो काम कर रही है जिससे जेहादी प्रसन्न हो सके और वो वोट ले सके | मणिशंकर अय्यर ने मुस्लिम तुष्टिकरण को बढ़ावा देने के लिए अण्डमान स्थित सेल्युलर जेल से वीर सावरकर के स्मृति चिन्हो को हटवा दिया |
यहाँ तक की उन्हें अंग्रेजो से माफी मांगने के नाम पर गद्दार तक कहा था |
भारत देश की विडंबना देखिये जिन महान क्रांतिकारियों ने अपना जीवन देश के लिए बलिदान कर दिया, उन क्रांतिकारियों के नाम पर जात-पात, प्रांतवाद, विचारधारा, राजनीतिक हित आदि के आधार पर विभाजन कर दिया गया। इस विभाजन का एक मुख्य कारण देश पर सत्ता करने वाला एक दल भी रहा। जिसने केवल गांधी-नेहरू को देश के लिए संघर्ष करने वाला प्रदर्शित किया। जिससे यह भ्रान्ति पैदा हो गई हैं कि देश को स्वतंत्रता गांधी जी/कांग्रेस ने दिलाई ?
वीर सावरकर भी स्वाधीनता के लिए प्राणोत्सर्ग करने वाले, सर्वस्व समर्पित करने वाले असंख्य क्रांतिकारियो अमर हुतात्माओं में से एक थे जिनकी पूर्ण रूप से उपेक्षा की गई |
वीर सावरकर ने अपनी कहानी में अंडमान की यात्राओं पर प्रकाश डालते हुए कोल्हू में बैल की तरह जुत कर तेल पेरने का बड़ा ही सजीव वर्णन किया है |
उन्होंने लिखा है - "हमें तेल का कोल्हू चलने का काम सोंपा गया जो बैल के ही योग्य माना जाता है.."
जेल में सबसे कठिन काम कोल्हू चलाना ही था|सवेरे उठते ही लंगोटी पहनकर कमरे में बंद होना तथा सांय तक कोल्हू का डंडा हाथ से घुमाते रहना कोल्हू में नारियल की गरी पड़ते ही वः इतना भारी चलने लगता की हृदय पुष्ट शरीर के व्यक्ति भी उसकी बीस फेरियां करते रोने लग जाते ...
राजनीतिक कैदियों का स्वास्थ्य खराब हो या भला, ये सब सख्त काम उन्हें दिए ही जाते थे चिकित्सा शास्त्र भी इस प्रकार साम्राज्यवादियों के हाथ की कठपुतली हो गया सवेरे दस बजे तक लगातार चक्कर लगाने से श्वास भारी हो जाता और प्रायः सभी को चक्कर आ जाता या कोई बेहोश हो जाते दोपहर का भोजन आते ही दरवाजा खुल पड़ता, बंदी थाली भर लेता और अंदर जाता की दरवाजा बंद
"यदि इस बीच कोई अभागा केडी चेष्टा करता की हाथ पैर धोले या बदन पर थोड़ी धूप लगाले तो नम्बरदार का पारा चढ़ जाता |
वह मां बहन की गालियाँ देनी शुरू कर देता था|हाथ धोने का पानी नहीं मिलता था,पीने के पानी के लिए तो नम्बरदार के सैंकड़ो निहार करने पड़ते थे | कोल्हू को चलाते चलाते पसीने से तर हो जाते,प्यास लग जाती | पानी मांगते तो पानी वाला पानी नही देता था |
यदि कही से उसे एकाध चुटकी तम्बाकू की दे दी तो अच्छी बात होती नही तो उलटी शिकायत होती की ये पानी बेकार बहाते है जो जेल मे एक बड़ा जुर्म होता...
यदि किसी ने जमादार से शिकायत की तो वः गुस्से में कह उठता - " दो कटोरी पानी देने का हुक्म है, तुम तो तीन पि गया और पानी क्या अब तुम्हारे बाप के यहाँ से आएगा ? " नहाने की तो कल्पना करना ही अपराध था |
हां , वर्षा हो तो भले नाहा लें |
"केवल पानी ही नहीं अपितु" भोजन की भी वही स्थिति थी, खाना देकर जमादार कोठरी बंद कर देता और कुछ देर में हल्ला करने लगता - " बैठो मत , शाम को तेल पूरा हो नही तो पीटे जाओगे | और जो सजा मिलेगी सो अलग " इसे वातावरण में बंदियों को खाना निगलना भी कठिन हो जाता | बहुत से ऐसा करते की मुंह में कौर रख लिया और कोल्हू चलाने लगे |कोल्हू पेरते पेरते थालियो मे पसीना टपकाते टपकाते,कौर को उठाकर मुंह में भरकर निगलते कोल्हू पेरते रहते १०० में से एकाध ऐसे थे जो दिन भर कोल्हू में जुतकर तीस पौंड तेल निकाल पाते | जो कोल्हू चलाते चलाते थककर हाय हाय कर देते उन पर जमादार और वार्डन की मार पड़ती| तेल पूरा न होने पर उपर से थप्पड़ पड़ रहे है, आँखों में आंसुओं की धारा बह रही है |
वीर सावरकर जानते थे कि यह अत्याचार क्रांतिकारियों पर अंग्रेजों द्वारा इसलिए किया जा रहा है ताकि वे मानसिक रूप से विक्षिप्त होकर या तो पागल हो जाये अथवा मर जाये। अंग्रेजों की छदम न्यायप्रियता का यह साक्षात उदाहरण था। इतिहास फिर से दोहरा रहा था..
औरंगजेब ने भी कभी अंग्रेजो के समान छत्रपति शिवाजी महाराज को कैद कर समाप्त करने का सोचा था ताकि शिवाजी महाराज दक्कन का कभी दोबारा मुँह न देख सके। जन्मभूमि से इतनी दूर जाकर इस प्रकार से मरना वीर सावरकर को किसी भी प्रकार से स्वीकार्य नही था
उन्हें लगा की उनका जीवन इसी प्रकार से नष्ट हो जायेगा |
मातृभूमि की सेवा वह कभी नहीं कर पाएंगे उन्होंने साम,दाम,दंड और भेद की वही नीति अपनाई जो वीर शिवाजी राजे ने औरंगज़ेब की कैद में अपनाई थी|
उन्होंने अंग्रेजों से क्षमा मांग कर मातृभूमि जाने का प्रस्ताव उनके समक्ष रखा | अंग्रेज उनकी कूटनीति का शिकार बन गए| वीर सावरकर को सशर्त रिहा कर दिया गया |
अपने निर्वासित जीवन में उन्हे न रत्नागिरी से बाहर नही निकलना था और न ही किसी भी प्रकार की क्रांतिकारी गतिविधि में भाग लेना था | वीरसावरकर ने अवसर का समुचित लाभ उठाया | उन्होंने अण्डमान जेल के कैदियों के अधिकारों के लिए आंदोलन किया |
उससे भी बढ़कर उन्होंने छुआछूत रूपी अन्धविश्वास के विरोध में आंदोलन चलाया, वीरसावरकर ने पतितपावन मंदिर की स्थापना की जिसमें बिना किसी भेदभाव के ब्राह्मण से लेकर शूद्र सभी को प्रवेश करने की अनुमति थी |
सामूहिक भोज का आयोजन किया जिसमे शूद्रो के हाथ से ब्राह्मण भोजन ग्रहण करते थे | दलित बच्चो को जनेऊ धारण करवाने से लेकर गायत्री मंत्र की शिक्षा दी | रत्नागिरि में वीर सावरकर ने छुआछूत रूपी अभिशाप को समाप्त करने के लिए अत्यंत प्रभावशाली आंदोलन किया | इसके साथ साथ जनचेतना के लिए उनका लेखन कार्य अविरल चलता रहा
खेद हैं कि वीर सावरकर के इस चिंतन, श्रम और पुरुषार्थ की अनदेखी कर साम्यवादी इतिहासकार अपनी आदत के मुताबिक उन्हे गद्दार कहकर अपमानित करते हैं। उनकी माफ़ी मांगने की कूटनीति को कायरता के रूप में प्रेषित करते है। धिक्कार है ऐसे पक्षपाती लेखकों को और ऐसे राजनेताओं को जो वीर सावरकर के महान कार्यों की उपेक्षा कर अपने राजनीतिक हितों को साधने में लगे हुए हैं। उन्हें गद्दार कहते है
वीर सावरकर गद्दार नहीं अपितु स्वाभिमानी थे। देशभक्त थे। धर्मयोद्धा थे। अनेक क्रांतिकारियों के मार्गदर्शक थे। कूटनीतिज्ञ थे। प्रबुद्ध लेखक थे। आत्मस्वाभिमानी थे। समाज सुधारक थे |
#वीर_सावरकर जी ने छुआछूत मिटाने,धर्मरक्षा,देश भक्ति के लिए पुरुषार्थ किया हमारे क्रांतिकारी महान है गद्दार कभी नहीं। गद्दार तो वो है जो उनकी आलोचना करते है।
नानासाहब पेशवा, महारानी लक्ष्मीबाई और वीर कुँवर सिंह जैसे कितने ही वीर इतिहास में दबे हुए थे। 1857 को सिपाही विद्रोह बताया गया था। तब इसके पर्दाफाश के लिए 20-22 साल का एक युवक लंदन की एक लाइब्रेरी का किसी तरह एक्सेस लेकर और दिन-रात लग कर अँग्रेजों के एक के बाद एक दस्तावेज पढ़ कर सच्चाई की तह तक जा रहा था, जो भारतवासियों से छिपाया गया था। उसने साबित कर दिया कि वो सैनिक विद्रोह नहीं, प्रथम स्वतंत्रता संग्राम था। उसके सभी अमर बलिदानियों की गाथा उसने जन-जन तक पहुँचाई। भगत सिंह सरीखे क्रांतिकारियों ने मिल कर उसे पढ़ा, अनुवाद किया।
दुनिया में कौन सी ऐसी किताब है जिसे प्रकाशन से पहले ही प्रतिबंधित कर दिया गया था ?
अँग्रेज कितने डरे हुए थे उससे कि हर वो इंतजाम किया गया, जिससे वो पुस्तक भारत न पहुँचे। जब किसी तरह पहुँची तो क्रांति की ज्वाला में घी की आहुति पड़ गई। कलम और दिमाग, दोनों से अँग्रेजों से लड़ने वाले सावरकर थे।..
दलितों के उत्थान के लिए काम करने वाले सावरकर थे।
11 साल कालकोठरी में बंद रहने वाले सावरकर थे।
हिंदुत्व को पुनर्जीवित कर के राष्ट्रवाद की अलख जगाने वाले सावरकर थे।
साहित्य की विधा में पारंगत योद्धा सावरकर थे।
आज़ादी के बाद क्या मिला उन्हें? अपमान।
नेहरू व मौलाना अबुल कलाम जैसो ने तो मलाई चाटी सत्ता की, सावरकर को गाँधी हत्या केस में फँसा दिया। गिरफ़्तार किया। पेंशन तक नहीं दिया। प्रताड़ित किया।
60 के दशक में उन्हें फिर गिरफ्तार किया, प्रतिबंध लगा दिया। उन्हें सार्वजनिक सभाओं में जाने से मना कर दिया गया। ये सब उसी भारत में हुआ, जिसकी स्वतंत्रता के लिए उन्होंने अपना जीवन खपा दिया। आज़ादी के मतवाले से उसकी आज़ादी उसी देश में छीन ली गई, जिसे उसने आज़ाद करवाने में योगदान दिया था।
शास्त्री जी PM बने तो उन्होंने पेंशन का जुगाड़ किया।
वो कालापानी में कैदियों को समझाते थे कि धीरज रखो, एक दिन आएगा जब ये जगह तीर्थस्थल बन जाएगी आज भले ही हमारा पूरे विश्व में मजाक बन रहा हो, एक समय ऐसा होगा जब लोग कहेंगे कि देखो, इन्हीं कालकोठरियों में हिंदुस्तानी कैदी बन्द थे।
सावरकर कहते थे कि तब उन्हीं कैदियों की यहाँ प्रतिमाएँ होंगी।
आज आप अंडमान जाते हैं तो सीधा 'वीर सावरकर इंटरनेशनल एयरपोर्ट' पर उतरते हैं। सेल्युलर जेल में उनकी प्रतिमा लगी है , उस कमरे में प्रधानमंत्री भी जाकर ध्यान धरता है, जिसमें सावरकर जी को रखा गया था |
सावरकर का अपमान करने का अर्थ है अपने ही थूक को ऊँट के मूत्र में मिला कर पीना |
आज आपको समझना होगा | कौन थे वीर सावरकर और क्या थे उनके कार्य | जो भ्रांतियां फैला रखी है कुछ लोगों ने वो दूर हो जाएंगी, ऐसे उनके कुछ कार्यो को जाणते है |
वीर सावरकर कौन थे..? जिन्हें आज कांग्रेसी और वामपंथी कोस रहे हैं और क्यों..??
ये 25 बातें पढ़कर आपका सीना गर्व से चौड़ा हो उठेगा।
इसको पढ़े बिना आज़ादी का ज्ञान अधूरा है !
तो चलीये जाणते हैं
1. वीर सावरकर पहले क्रांतिकारी देशभक्त थे जिन्होंने 1901 में ब्रिटेन की रानी विक्टोरिया की मृत्यु पर नासिक में शोक सभा का विरोध किया और कहा कि वो हमारे शत्रु देश की रानी थी, हम शोक क्यूँ करें?
क्या किसी भारतीय महापुरुष के निधन पर ब्रिटेन में शोक सभा हुई है.?
2. वीर सावरकर पहले देशभक्त थे जिन्होंने एडवर्ड सप्तम के राज्याभिषेक समारोह का उत्सव मनाने वालों को त्र्यम्बकेश्वर में बड़े बड़े पोस्टर लगाकर कहा था कि गुलामी का उत्सव मत मनाओ..!
3. विदेशी वस्त्रों की पहली होली पूना में 7 अक्तूबर 1905 को वीर सावरकर ने जलाई थी…!
4. वीर सावरकर पहले ऐसे क्रांतिकारी थे जिन्होंने विदेशी वस्त्रों का दहन किया, तब बाल गंगाधर तिलक ने अपने पत्र केसरी में उनको शिवाजी के समान बताकर उनकी प्रशंसा की थी जबकि इस घटना की दक्षिण अफ्रीका के अपने पत्र ‘इन्डियन ओपीनियन’ में गाँधी ने निंदा की थी…!
5. सावरकर द्वारा विदेशी वस्त्र दहन की इस प्रथम घटना के 16 वर्ष बाद गाँधी उनके मार्ग पर चले और 11 जुलाई 1921 को मुंबई के परेल में विदेशी वस्त्रों का बहिष्कार किया…!
6. सावरकर पहले भारतीय थे जिनको 1905 में विदेशी वस्त्र दहन के कारण पुणे के फर्म्युसन कॉलेज से निकाल दिया गया और दस रूपये जुरमाना किया… इसके विरोध में हड़ताल हुई… स्वयं तिलक जी ने ‘केसरी’ पत्र में सावरकर के पक्ष में सम्पादकीय लिखा…!
7. वीर सावरकर ऐसे पहले बैरिस्टर थे जिन्होंने 1909 में ब्रिटेन में ग्रेज-इन परीक्षा पास करने के बाद ब्रिटेन के राजा के प्रति वफ़ादार होने की शपथ नहीं ली… इस कारण उन्हें बैरिस्टर होने की उपाधि का पत्र कभी नहीं दिया गया…!
8. वीर सावरकर पहले ऐसे लेखक थे जिन्होंने अंग्रेजों द्वारा ग़दर कहे जाने वाले संघर्ष को ‘1857 का स्वातंत्र्य समर’ नामक ग्रन्थ लिखकर सिद्ध कर दिया…!
9. सावरकर पहले ऐसे क्रांतिकारी लेखक थे जिनके लिखे ‘1857 का स्वातंत्र्य समर’ पुस्तक पर ब्रिटिश संसद ने प्रकाशित होने से पहले प्रतिबन्ध लगाया था…।
10. ‘1857 का स्वातंत्र्य समर’ विदेशों में छापा गया और भारत में भगत सिंह ने इसे छपवाया था जिसकी एक एक प्रति तीन-तीन सौ रूपये में बिकी थी…! भारतीय क्रांतिकारियों के लिए यह पवित्र गीता थी… पुलिस छापों में देशभक्तों के घरों में यही पुस्तक मिलती थी…!
11. वीर सावरकर पहले क्रान्तिकारी थे जो समुद्री जहाज में बंदी बनाकर ब्रिटेन से भारत लाते समय आठ जुलाई 1910 को समुद्र में कूद पड़े थे और तैरकर फ्रांस पहुँच गए थे…!
12. सावरकर पहले क्रान्तिकारी थे जिनका मुकद्दमा अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय हेग में चला, मगर ब्रिटेन और फ्रांस की मिलीभगत के कारण उनको न्याय नहीं मिला और बंदी बनाकर भारत लाया गया…!
13. वीर सावरकर विश्व के पहले क्रांतिकारी और भारत के पहले राष्ट्रभक्त थे जिन्हें अंग्रेजी सरकार ने दो आजन्म कारावास की सजा सुनाई थी…!
14. सावरकर पहले ऐसे देशभक्त थे जो दो जन्म कारावास की सजा सुनते ही हंसकर बोले - “चलो, ईसाई सत्ता ने हिन्दू धर्म के पुनर्जन्म सिद्धांत को मान लिया”…!
15. वीर सावरकर पहले राजनैतिक बंदी थे जिन्होंने काला पानी की सज़ा के समय 10 साल से भी अधिक समय तक आज़ादी के लिए कोल्हू चलाकर 30 पोंड तेल प्रतिदिन निकाला…!
16. वीर सावरकर काला पानी में पहले ऐसे कैदी थे जिन्होंने काल कोठरी की दीवारों पर कंकर कोयले से कवितायें लिखीं और 6000 पंक्तियाँ याद रखी..!
17. वीर सावरकर पहले देशभक्त लेखक थे, जिनकी लिखी हुई पुस्तकों पर आज़ादी के बाद कई वर्षों तक प्रतिबन्ध लगा रहा…!
18. वीर सावरकर पहले विद्वान लेखक थे जिन्होंने हिन्दू को परिभाषित करते हुए लिखा कि :
‘आसिन्धु सिन्धुपर्यन्ता यस्य भारत भूमिका,
पितृभू: पुण्यभूश्चैव स वै हिन्दुरितीस्मृतः।
अर्थात समुद्र से हिमालय तक भारत भूमि जिसकी पितृभूमि है, जिसके पूर्वज यहीं पैदा हुए हैं व यही पुण्य भूमि है, जिसके तीर्थ भारत भूमि में ही हैं, वही हिन्दू है..!
19.वीर सावरकर प्रथम राष्ट्रभक्त थे जिन्हें अंग्रेजी सत्ता ने 30 वर्षों तक जेलों में रखा तथा आजादी के बाद 1948 में नेहरु सरकार ने गाँधी हत्या की आड़ में लाल किले में बंद रखा पर न्यायालय द्वारा आरोप झूठे पाए जाने के बाद ससम्मान रिहा कर दिया…
देशी-विदेशी दोनों सरकारों को उनके राष्ट्रवादी विचारों से डर लगता था…।
20. वीर सावरकर पहले क्रांतिकारी थे जब उनका 26 फरवरी 1966 को उनका स्वर्गारोहण हुआ तब भारतीय संसद में कुछ सांसदों ने शोक प्रस्ताव रखा तो यह कहकर रोक दिया गया कि वे संसद सदस्य नही थे जबकि चर्चिल की मौत पर शोक मनाया गया था…।
21. वीर सावरकर पहले क्रांतिकारी राष्ट्रभक्त स्वातंत्र्य वीर थे जिनके मरणोपरांत 26 फरवरी 2003 को उसी संसद में मूर्ति लगी जिसमे कभी उनके निधन पर शोक प्रस्ताव भी रोका गया था…।
22. वीर सावरकर ऐसे पहले राष्ट्रवादी विचारक थे जिनके
चित्र को संसद भवन में लगाने से रोकने के लिए कांग्रेस अध्यक्षा सोनिया गाँधी ने राष्ट्रपति को पत्र लिखा लेकिन राष्ट्रपति डॉ. अब्दुल कलाम ने सुझाव पत्र नकार दिया और वीर सावरकर के चित्र अनावरण राष्ट्रपति ने अपने कर-कमलों से किया..|
23. वीर सावरकर पहले ऐसे राष्ट्रभक्त हुए जिनके शिलालेख को अंडमान द्वीप की सेल्युलर जेल के कीर्ति स्तम्भ से UPA सरकार के मंत्री मणिशंकर अय्यर ने हटवा दिया था और उसकी जगह गांधी का शिलालेख लगवा दिया..।
24. वीर सावरकर ने दस साल आजादी के लिए काला पानी में कोल्हू चलाया था जबकि गाँधी ने काला पानी की उस जेल में कभी दस मिनट चरखा नही चलाया..?
25. वीर सावरकर माँ भारती के पहले सपूत थे जिन्हें जीते जी और मरने के बाद भी आगे बढ़ने से रोका गया…
पर आश्चर्य की बात यह है कि इन सभी विरोधियों के घोर अँधेरे को चीरकर आज वीर सावरकर सभी मे लोकप्रिय और युवाओं के आदर्श बन रहे है।।
हजारो झूले थे फंदे पर, लाखों ने गोली खाई थी
क्यों झूठ बोलते थे साहब, चरखे से आजादी आई थी..
॥ वन्दे मातरम् ॥ 🇮🇳
@BhagirathShelar