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Hijab Controversy

 


कर्नाटक के छोटे से शहर उडुपी में, 6 मुस्लिम लड़कियां अचानक हिजाब पर जोर देने लगती हैं, क्योंकि कॉलेज का युनिफॉर्म सालों से है। पिछले कुछ हफ्तों में यह नहीं बदला है। फिर अचानक से वो 6 लड़कियां इसे शुरू करते हैं और 4-5 दिनोंमे "पहले हिजाब, फिर किताब" के फलक देश भर मे लगाये जाते हैं । और इस आंदोलन को मुस्लिमों द्वारा उठाया जाता है। उनको देश में प्रगतिवादियों का समर्थन तुरंत मिलता है और दो दिन से पाकिस्तान और चीन यह पडोसी देश इस आंदोलन की आलोचना कर रहे हैं।


तुम क्या सोचते हो ?  क्या वो 6 लड़कियां इतनी प्रभावशाली हैं ?  अगर आप वाकई ऐसा महसूस करते हैं, तो भगवान आपको बुध्दी दें।


2019 में, नरेंद्र मोदी सरकार ने 2014 की तुलना में अधिक सीटें जीतीं और दूसरे कार्यकाल में प्रवेश किया और विपक्ष ने आंदोलन शुरू कर दिया।  पहले तो बहुत शांत था।  लेकिन जब मोदी-शाह ने राम मंदिर, तीन तलाक बिल और अनुच्छेद 370 को हटाकर दिखाया कि बीजेपी चुनावी एजेंडे में अपना वादा पूरा कर रही है। चाहे कितनी भी मुश्किल क्यों न हो। इसी के चलते देश में देश विरोधी ताकतों ने देश के बाहर भारत विरोधी ताकतों से हाथ मिला लिया है और नवंबर 2019 से आंदोलन शुरू कर दिया है ।


आंदोलनों का कालक्रम देखें:


1) देश में CAA लागू किया गया और CAA विरोधी आंदोलन पहले जेएनयू, फिर जामिया मिलिया, जाधवपुर विश्वविद्यालय और फिर मुंबई, बैंगलोर (दिसंबर 2019-जनवरी 2020) में फैल गया।


2) शाहीन बाग आंदोलन (जनवरी 2020 से मार्च 2020)


3) ट्रंप का दौरा -- दिल्ली दंगे (फरवरी 2020)


4)निजामुद्दीन मरकज (मार्च 2020)

 (कोविड के पहले लॉकडाउन के कारण सन्नाटा)


5) महाराष्ट्र-मुंबई-दिल्ली से उत्तर प्रदेश में मजदूरों का बड़े पैमाने पर पलायन और इसलिए राजनीति (अप्रैल 2020)


6) गलवान इश्यू से चीन के लिये मीठे बोल, और देश की लोकतांत्रिक रूप से चुनी गई सरकार पर लगे गंभीर आरोप (जून 2020).


7) सरकार कोविड के लिए कुछ नहीं कर रही है, बेरोजगारी बढ़ी है, सरकार गरीबों को चीजें मुफ्त में दे, करदाताओं को कर राहत, छोटे व्यवसायों को भी रियायतें, बड़े उद्योगों के आर्थिक कारोबार को गति देने के लिए उन्हें रियायतें, आदि।  आदि।  मांगों का आदेश (अप्रैल 2020 से जुलाई 2020)


8) 26 जनवरी को लाल किले पर आक्रमण (जनवरी 2021)


9) टीकाकरण पर राजनीति (जनवरी 2021 से अक्टूबर 2021)


10) ऑक्सीजन सिलेंडर, वेंटिलेटर पर राजनीति (अप्रैल 2021 से जून 2021)


11) जलते हुए चीतों की फोटो बेचकर अंतरराष्ट्रीय मीडिया में देश को बदनाम करने की साजिश (जून 2021)


12) कृषि अधिनियम का विरोध और दिल्ली सीमा पर किसानों के आंदोलन (नवंबर 2020 से जनवरी 2022) ने खुलासा किया कि कैसे टूल किट गैंग (देश के भीतर और बाहर के लोग योजनाबद्ध तरीके से एक साथ काम कर रहे हैं यह खुलासा भी हुआ)।


13) अब हिजाब आंदोलन (फरवरी 2022) ...... कृषि आंदोलन खत्म हो गया है, पूर्ण विश्वास के बाद, हिजाब आंदोलन के लिए फंडींग शुरु कर दी है।


यदि आप इसके बारे में सोचते हैं, तो शुरुआत से ही इन सभी मामलों/आंदोलनों को सीधे सर्वोच्च न्यायालय में ले जाया गया है। मतलब यह है की, ये लोग बहुत तैयारी और योजना के साथ काम कर रहे हैं।


मतलब है की, वे सभी (देशद्रोही लोग) योजना बनाने पर काम कर रहे हैं …… और हम में से कई लोग सोशल मीडिया पर धर्मनिरपेक्षता (secular) का ब्रेनवॉश कर रहे हैं।  उसके कारण, ये लोग ऐसी स्थिति में हैं कि ये राष्ट्र-विरोधी लोग, उन्हें बिना कुछ किए, (बिना यह सोचे कि वे सोचते हैं कि हम बहुत विचारशील हैं), उनका समर्थन करते हैं और धर्मनिरपेक्षता की भूमिका निभाते हैं।


हमारे देश ने दोनों ओलंपिक में पदक जीते हैं। अधिकांश पदक 2021 ओलंपिक में जीते थे। हमने दुनिया भर में अपने देश में निर्मित टीकों की आपूर्ति की है। हमारे कृषि उत्पाद एक रिकॉर्ड बन गए हैं।  हमारे पास दुनिया में सबसे अधिक टीकाकरण हैं और परिणाम तीसरी लहर में हैं। हमारा देश वर्ल्ड स्टार्टअप नेशन्स की लिस्ट मे तिसरे स्थान पर हैं, जो बहुत बडी बात है । आपकी जीडीपी बहुत अच्छी है।  हमारा वर्तमान बजट अगले 25 वर्षों में भारत को कैसा दिखना चाहिए, इसका रोडमैप है।  हम सिर्फ सोशल मीडिया में प्रगतिशील विरोधियों द्वारा दिए गए विषयों को चबा रहे हैं ।

आँखें खोलो और जागो..... जरा देखो क्या हो रहा है।  अकारण बहस करके इस टूलकिट गिरोह को सफल मत बनाओ। एक दिल से अनुरोध।


सोचने वाली बात है, लेकिन आज हमारे समाज मे ऐसी लड़कियां हैं।  जो शिक्षा चाहती हैं, लेकिन उन्हें शिक्षा नहीं मिलती है।  और कुछ ऐसी कट्टरपंथी मानसिकता वाली लड़कियां भी हैं जो अपनी शिक्षा से ज्यादा अपनी धार्मिक प्रथाओं को महत्व देती हैं।

 मेरा विरोध धार्मिक प्रथाओं में विश्वास करने का नहीं है, क्योंकि हर धर्म के लोगों को विश्वास करने का मौलिक अधिकार है।  हमारा संविधान हर आस्तिक को यह अधिकार देता है, लेकिन तभी जब हमारी धार्मिक प्रथाएं हमारी बुनियादी जरूरतों से ज्यादा महत्वपूर्ण हों।

इसलिए उस समुदाय के लोगों को सोचने की जरूरत है। आज कुछ लोग 21वीं सदी में जीते हैं लेकिन नैतिक सोच अभी भी 7वीं सदी में है।  लेकिन अब यह लड़ाई अधिकारों की लड़ाई नहीं है, यह लड़ाई वर्चस्व की दौड़ है।


अब तक मजहबी कट्टरपंथ का जवाब सद्भावना और गंगू जुम्मन तहजीब से दिया जा रहा था। हम दिन में 5 बार लाउडस्पीकर से ये सुनते आ रहे थे कि उनके खुदा के अलावा और कोई नही दुनिया मे, अब तक हम चुप थे तो सब सही था, एकतरफा धर्म निरपेक्षता से सब शांत था पर अब जरा सा विरोध क्या किया तो सारे सियार एक साथ हिन्दुओ पर ही असहिष्णु होने का आरोप लगा कर चिल्लाने लगे। 


इस नकली भाईचारे में वो हमें चारा समझ कर निगलते रहे, मगर अब हमने सवाल किया तो उल्टा इल्ज़ाम हम पर ही आ गया। इस सबमें सबसे बड़ा मूर्ख वो हिन्दू है जो मात्र राजनैतिक विचारधारा के चलते आंख मूंद स्वयं हिन्दुओ का विरोध कर रहा। वो इतना दोगला हो चला है कि घूंघट का तो विरोध करता है पर हिजाब का समर्थन करता है,वो सब कुछ जानते समझते भी बस राजनैतिक विरोध के लिये गलत के साथ खड़ा है। 


पर ठीक है,पड़ोसी का घर जलता देख वो आग बुझाने की जगह ताली बजा रहा आज, पर कल को ये आग उसके घर तक भी आएगी, वो ये नही सोच रहा।


कर्नाटक के स्कूल कॉलेजों में मांग हो रही है कि आज "हमें हिजाब पहन कर स्कूल आने दिया जाए" कहानी यंही तक रुक जाए तो शायद कोई दिक्कत नही पर कहानी यंहा रुकेगी नही।


इस मांग के माने जाने के बाद असल कहानी शुरू होगी।

फिर इनकी मांग बढ़ेगी,


1) हमें स्कूल में नमाज अदा करने का मौका चाहिए।

2) नमाज अदा करने के लिए अलग जगह चाहिए।

3) कॉलेज कैंटीन में हलाल का काउंटर अलग हो जंहा बस हलाल ही परोसा जाए।

4) हमारे नमाज़ समय के दौरान क्लास व पढ़ाई से छूट मिलना चाहिए।

5) रविवार को छुट्टी क्यों है ? हमें शुक्रवार को छुट्टी दें।

6) सिलेबस में कृष्ण,बुद्ध और राम के चैप्टर है, इन्हें हम ईश्वर नही कह सकते, तो उन सब की जरूरत नहीं है, इन्हें हटाये।

7) अप्रैल और मई में स्कूल की छुट्टी क्यों है ? हमारे रमजान महीने में दे दो।


और उसके बाद हिजाब वाली छात्राएँ कहेंगी वो हिंदू अध्यापकों से नहीं पढ़ेंगी।

इसके बाद  मुसलमान का केस मुस्लिम जज ही सुनेगा नहीं तो इंसाफ़ नहीं होगा।

जब ये बहुसंख्यक हो जाएंगे तो यही ईशनिंदा कहलाएगी, जिसके लिए क़त्ल वाजिब है।

इनको अधिकार चाहिए देश के संविधान के हिसाब से और  चलेंगे के इस्लाम के सिध्दांतों से।


धर्मनिरपेक्षता क्या सिर्फ हिन्दुओं के लिए है?


#ReactingWords

@BhagirathShelar



7 comments:

  1. Very pertinent and sharp analysis. Very
    well written.

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  2. एक दम सही बात है आगे से और हिन्दुओ व देश के खिलाप और कोई साजिश हो उसके पहले हमें सचेत होने जरूरी है हर हिन्दू व देश के हर नागरिक को राजनीति को पीछे छोड़ देश हित में जो सही है उसके लिए आवाज उठाना चाहिए

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  3. देश संविधान से चलेगा न कि सरियत से इसलिए एक देश एक कानून होना चाहिए इन बाहरी साजिशों को सटीक जवाब भी मिलेगा

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