अजमेर शरीफ दरगाह: एक ऐतिहासिक दृष्टिकोण

अजमेर शरीफ दरगाह: एक ऐतिहासिक दृष्टिकोण


अजमेर शरीफ दरगाह: एक ऐतिहासिक दृष्टिकोण



अजमेर शरीफ दरगाह को अक्सर हिंदू-मुस्लिम एकता का प्रतीक माना जाता है। लेकिन, इस स्थल का इतिहास एक अलग ही कहानी बयान करता है। यह दरगाह उस स्थान पर बनाई गई है जहां कभी प्राचीन हिंदू और जैन मंदिर हुआ करते थे। इन मंदिरों को मुस्लिम आक्रमणकारियों ने नष्ट कर दिया और उन्हीं के अवशेषों पर यह दरगाह बनाई गई।

महादेव मंदिर का विध्वंस

दरगाह परिसर, जहां आज चिश्ती का मकबरा है, पहले भगवान महादेव का एक भव्य मंदिर था। इस मंदिर में चंदन की लकड़ी से भगवान शिव की पूजा की जाती थी। चंदन, जो शिवजी को शांत करने के लिए इस्तेमाल होता है, का वहां विशेष महत्व था। चिश्ती के मकबरे के पास स्थित ‘संदल खाना’ वह स्थान है जहां चंदन तैयार किया जाता है। यह स्थान मूल महादेव मंदिर का गर्भगृह था।

"संदल खाना" नाम भी उस परंपरा का प्रतीक है, जो महादेव की पूजा के लिए चंदन के उपयोग से जुड़ी थी। प्राचीन ब्राह्मण परिवार, जो इस मंदिर की देखभाल करते थे, आज "घरियाली" के नाम से जाने जाते हैं। इनका कार्य मंदिर की घंटी बजाने और महादेव की पूजा के लिए तैयारियों में मदद करना था।

इतिहास में दरगाह का निर्माण

चिश्ती के जीवन के लगभग 250 साल बाद महमूद खिलजी और मुगलों ने इस दरगाह का निर्माण कराया। मुख्य ढांचा हिंदू और जैन मंदिरों के अवशेषों से बनाया गया। बुलंद दरवाजा, जो दरगाह का प्रवेश द्वार है, हिंदू और जैन वास्तुकला की शैली में बना है। इसमें प्रयुक्त पत्थरों और नक्शों को सफेदी और रंग से ढक दिया गया है।

दरगाह का मुख्य गुम्बद और अन्य संरचनाएं भी मंदिर के पत्थरों और नक्काशीदार स्तंभों से बनी हैं। शाहजहां ने जलाशयों को गहरा किया और अकबर ने "अकबरी मस्जिद" का निर्माण कराया, जो पहले हिंदू जलाशय का भाग था।

अजयमेरु का प्राचीन वैभव

अजयमेरु, जिसे आज अजमेर कहते हैं, प्राचीन काल में मंदिरों और जलाशयों के लिए प्रसिद्ध था। इस शहर में कई प्राचीन जलाशय और मंदिर थे, जिनमें से अधिकतर को इस्लामी आक्रमणों के दौरान नष्ट कर दिया गया। अदाई-दिन-का-झोपड़ा, जो आज एक मस्जिद है, एक विशाल विष्णु मंदिर और हिंदू विश्वविद्यालय के ऊपर बनाया गया था। इसके निर्माण के दौरान मंदिर के मूल स्तंभों को बदलने के बजाय उन्हीं का उपयोग किया गया।

चिश्ती और सूफीवाद का स्याह पक्ष

चिश्ती, जो मोहम्मद गौरी के साथ भारत आए थे, ने कई हिंदू मंदिर नष्ट किए और हजारों हिंदुओं का धर्मांतरण करवाया। अजमेर में हिंदुओं को अपमानित करने के लिए प्रतिदिन गाय की बलि दी जाती थी। यह दरगाह सूफीवाद के उस पक्ष को दिखाती है, जो भारत में जिहाद और धार्मिक असहिष्णुता से जुड़ा था।

ऐतिहासिक साक्ष्यों के अनुसार, चिश्ती ने खुद को "इस्लाम का प्रचारक" मानते हुए काफिरों के विरुद्ध जिहाद का समर्थन किया। उनके द्वारा कई हिंदू और जैन मंदिरों को अपवित्र किया गया और उनके अवशेषों को अपने मकबरे के निर्माण में प्रयोग किया गया।

संदर्भ और ऐतिहासिक साक्ष्य

  1. "Ajmer: Historical And Descriptive" - हर बिलास सरदा

  2. "A History of Sufism in India" - सैयद अतहर अब्बास रिजवी

  3. "Islamic Jihad: A Legacy of Forced Conversion, Imperialism, and Slavery" - एम.ए. खान

पुरातात्त्विक प्रमाण

अजमेर क्षेत्र का सर्वेक्षण करने वाले पुरातत्वविद कैंपबेल कार्लाइल ने बताया कि दरगाह परिसर हिंदू मंदिरों के अवशेषों पर बना है। उन्होंने यह भी बताया कि मंदिर के कई भाग अभी भी भूमिगत हैं। अकबर और शाहजहां ने जलाशयों और अन्य संरचनाओं को बदलकर इस्लामी धार्मिक स्थलों में तब्दील कर दिया।

आज की स्थिति

अजमेर शरीफ दरगाह, जो आज बॉलीवुड और कथित धर्मनिरपेक्षता के प्रतीक के रूप में प्रचारित की जाती है, वास्तव में हिंदू और जैन धर्मस्थलों के विध्वंस का साक्ष्य है। यह स्थल हमें यह याद दिलाता है कि भारत का सांस्कृतिक और धार्मिक इतिहास कितना समृद्ध और साथ ही पीड़ित भी रहा है।

निष्कर्ष

अजमेर शरीफ दरगाह का इतिहास यह स्पष्ट करता है कि यह स्थल धार्मिक सहिष्णुता का नहीं, बल्कि धार्मिक उत्पीड़न का प्रतीक है। हिंदू और जैन मंदिरों के विध्वंस और उनके स्थान पर दरगाह के निर्माण की कहानी हमें यह सोचने पर मजबूर करती है कि हमें अपने सांस्कृतिक और धार्मिक धरोहरों को कैसे संरक्षित करना चाहिए।

नोट: इस लेख का उद्देश्य केवल ऐतिहासिक साक्ष्यों को उजागर करना है। किसी भी समुदाय की धार्मिक भावनाओं को आहत करना इसका मकसद नहीं है।

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